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ऋषि पंचमी की पूजा में इन मंत्रों करें जाप
कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोय गौतम:।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषय: स्मृता:।।
गृह्णन्त्वर्ध्य मया दत्तं तुष्टा भवत मे सदा।।
ऋषि पंचमी पर विधि विधान से सप्तर्षियों की पूजा करने से व्यक्ति के सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। यह व्रत अविवाहित स्त्रियों के लिए यह व्रत बेहद महत्त्वपूर्ण और फलकारी माना जाता है। इस दिन हल से जोते हुए अनाज को नहीं खाना चाहिए अर्थात जमीन से उगने वाले अन्न भी ग्रहण नहीं करने चाहिए।
ऋषि पंचमी व्रत रखने का कारण
विदर्भ देश में उत्तंक नामक एक सदाचारी ब्राह्मण रहता था। उसकी सुशीला नाम की पत्नी बड़ी पतिव्रता रखती थी। उस ब्राह्मण के दो संतान थी, एक पुत्र और एक पुत्री। विवाह योग्य होने पर उस ब्राह्मण ने समान कुलशील वर के साथ कन्या का विवाह कर दिया। लेकिन दैवयोग से कुछ दिनों बाद ही ब्राह्मण की पुत्री विधवा हो गई। दुखी ब्राह्मण दम्पति कन्या सहित गंगा तट पर कुटिया बनाकर रहने लगे थो।
एक दिन ब्राह्मण कन्या सो रही थी कि उसका शरीर कीड़ों से भर गया। कन्या ने सारी बातें अपनी मां को बताई। मां ने पति से सब कहते हुए पूछा- प्राणनाथ! मेरी साध्वी कन्या की यह गति होने का क्या कारण है?
उत्तंक ने समाधि द्वारा इस घटना का पता लगाकर बताया कि पूर्व जन्म में भी यह कन्या ब्राह्मणी थी। इसने रजस्वला होते ही बर्तन छू लिए थे। इस जन्म में भी इस कन्या ने लोगों की देखा-देखी की है और ऋषि पंचमी का व्रत भी नहीं किया। इसलिए इसके शरीर में कीड़े पड़े हैं।
धर्म-शास्त्रों की मान्यता है कि रजस्वला स्त्री पहले दिन चाण्डालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी तथा तीसरे दिन धोबिन के समान अपवित्र होती है। वह चौथे दिन स्नान करके शुद्ध होती है। यदि यह शुद्ध मन से अब भी ऋषि पंचमी का व्रत करें तो इसके सारे कष्ट दूर हो जाएंगे और अगले जन्म में अटल सौभाग्य की प्राप्त होगी।
पिता की आज्ञा से पुत्री ने विधि पूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत एवं पूजन किया। व्रत के प्रभाव से वह सारे दुखों से मुक्त हो गई। अगले जन्म में उसे अटल सौभाग्य सहित अक्षय सुखों का भोग भी मिला।