ऐसा माना जाता है कि जिन लोगों की अकाल मृत्यु होती है, वे प्रेत के रूप में इस पर्वत पर वास करते हैं। यही वजह है कि पितृपक्ष के समय तो लोग इस प्रेतशिला पर्वत पर आते हैं, लेकिन अन्य दिनों में यहां कोई भी नहीं आता। यहां पिंडदान करने से प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है। पहाड़ के ऊपर बड़ी सी शीला है, जिस पर भगवान ब्रह्मा के पैर के निशान हैं और उन पर तीन लकीरें है, जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु, महेश कहा जाता है। इस जगह पर पिंड अर्पित किया जाता है। साथ ही सत्तू उड़ाने का प्रावधान है। ऐसा माना जाता है कि सत्तू उड़ाने से जो प्रेत बने हैं, वे सत्तू को लेकर बैकुंठ चले जाते हैं और उन्हें प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है। यही वजह है कि अकाल मृत्यु के शिकार लोगों को यहां पिंडदान किया जाता है।