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अद्भुत है इस मंदिर की परंपरा, आरती में श्वान भी निभाते हैं अपनी सहभागिता, यहां आने से टलती हैं काल विपदाएं

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गयाSep 21, 2020 / 05:10 pm

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अद्भुत है इस मंदिर की परंपरा, आरती में श्वान भी निभाते हैं अपनी सहभागिता, यहां आने से टलती हैं काल विपदाएं

अद्भुत है इस मंदिर की परंपरा, आरती में श्वान भी निभाते हैं अपनी सहभागिता, यहां आने से टलती हैं काल विपदाएं

प्रियरंजन भारती
(बक्सर,गया): तरह—तरह की मान्यताओं से भरे देश में कई ऐसे उदाहरण हैं, जिनसे लोग हैरान हो जाते हैं। बक्सर के चरित्रवन स्थित श्मशान घाट परिसर में स्थित श्मशामवासिनी मां काली मंदिर में भी ऐसा ही एक नजारा यहां आने-जाने वाले लोगों को हैरान करता है। मंदिर के परम भक्तों में इंसानों के साथ ‘कुत्ते’ भी शामिल हैं। सुबह-शाम मंदिर की आरती में कुत्ते झुंड बनाकर शरीक होते हैं। आरती की पहली घंटी बजते ही श्मशामवासिनी मां काली मंदिर के आसपास घूमते हुए ‘कुत्ते’ वहां पहुंच जाते हैं। मंदिर की सीढ़ी चढ़ गर्भगृह के सामने मुंह कर खड़े हो जाते हैं और एक स्वर में भौंकते हैं। आरती के बाद प्रसाद में इन्हें भी मिश्री का प्रसाद दिया जाता है। प्रसाद खाकर वे वहां से चले जाते हैं।

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20 साल से आरती में शामिल हो रहे ‘कुत्ते’

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आरती के दौरान वहां अन्य लोग भी होते हैं, लेकिन श्मशान घाट के आसपास विचरण करने वाले दर्जनभर खूंखार ‘कुत्ते’ किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते और मिश्री खाने के बाद चुपचाप वहां से चले जाते हैं। मंदिर के पुजारी मुन्ना पंडित बताते हैं कि वे खुद करीब 20 सालों से ऐसे ही आरती में ‘कुत्तों’ के शामिल होते देख रहे हैं।

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पूजा करने से काल-विपदा जाती है टल

पुराने लोग बताते हैं कि बहुत पहले झोपड़ीनुमा मंदिर में मां काली की पूजा होती थी। उस समय भी ‘कुत्ते’ यहां जमघट लगाए रहते थे। बाद में पुजारी हरेराम बाबा के समय मंदिर की स्थापना हुई और सुबह-शाम विधिवत आरती होने लगी। मंदिर से ‘कुत्तों’ का जुड़ाव को देखते हुए इसी परिसर में श्री काल भैरवनाथ मंदिर का निर्माण कराया गया है। इस मंदिर के सामने पंचमुंड आसन है। ऐसा माना जाता है कि यहां की पूजा करने से काल-विपदा टल जाती है।

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सप्ताह में दो दिन होती है शिवाबली पूजा

श्मशान वासिनी काली मंदिर में हर सप्ताह रविवार और मंगलवार को विशेष पूजा होती है, जिसे शिवाबली पूजा कहा जाता है। इसमें कई तरह के प्रसाद चढ़ाए जाते हैं और पूजा संपन्न होने के बाद ‘कुत्तों’ को भोग लगाया जाता है। कुछ जानकार लोगों ने बताया कि यहां का खर्च फक्कड़ बाबाओं की आमद से चलता है। श्मशान घाट में कर्मकांड कराने के बदले फक्कड़ बाबा को जो पैसे मिलते हैं, उसका आधा हिस्सा मंदिर के खाते में जाता है। ऐसे में मंदिर की दैनिक आमदनी काफी अच्छी है।

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