14 जनवरी मकर संक्रांति के बाद ठंड कम होने लगती है, परंतु इस बार तो सिर्फ 15 जनवरी को ही जरा गर्मी का एहसास केवल एक दिन हुआ। उसके बाद 16 जनवरी से लेकर जो ठंड पड़ रहा है, वह असहनीय हो रही है। तडक़े उठने वाले और देर रात तक वॉक करने वाले अधिकांश लोगों की अब बाहर निकलने की हिम्मत नहीं पड़ रही। एक तरह से शीत लहर जैसा आभास होने लगा है। लोग तो यह कहने से भी नहीं चूक रहे हैं कि इतनी ठंड तो दिसंबर में भी नहीं पड़ी। सामने राजिम मेला है।
मेले के समय यदि यही हाल रहा, तो लोग ठंड से ठिठुरन के कारण शायद ही घर से बाहर निकल पाएंगे। रात-रात भर चलने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी ठंड के चलते शायद ही उस तरह की भीड़ रह पाएगी, जैसा कि दीगर वर्षों में देखने को मिलती रही है। शीत लहर के चलते पूरा जनजीवन प्रभावित है। शाम होते ही सडक़ें सूनी हो जाती है। लोग सुबह देर से उठते हैं। दिन में भी गर्म कपड़ों को लादना एक तरह से मजबूरी हो गई है।
शीत लहर का ऐसा कहर लोग दशकों बाद देख रहे हैं। सुबह-सुबह चलने वाली यात्री बसों में भी यात्रियों की संख्या नहीं के बराबर हो गई है। दूर-दराज नौकरी करने और पढ़ाई करने जाने वालों को ठंड के चलते काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। शहर में ठंड को भगाने नगर पंचायत द्वारा कुछ दिन पहले चौक-चौराहों पर अलाव जलाने का आदेश दिया था, पर अब वह भी नहीं दिख रहा है।
इस कारण सेहत बनाने की बजाय सेहत की सुरक्षा पर ध्यान देना पड़ रहा है। नदी तट के दोनों शहर राजिम एवं नवापारा में ठंड इस दफे इस कदर कहर बरपा रही है कि रात तो रात, दिन में भी लोगों को कपकपी छूट रही है। हाल में पड़ रही कड़ाके की ठंड के चलते उन गरीब परिवारों की हालत खराब हो गई है। ऐसों की उम्मीद यहां के समाजसेवी संस्थाओं पर टिकी है कि ठंड से बचने कोई तो कंबल बांटेगा।