लुप्त हो रहे प्राचीन वाद्य यंत्र
गाडरवाराPublished: Sep 18, 2018 05:13:06 pm
टिमकी, ढोलक बनाकर आज भी कुछ कारीगर जीवित रखे हैं कला
ancient musical instruments
गाडरवारा-सालीचौका। भारतीय संगीत में नाद को ब्रम्ह कहा गया है। बताया जाता है ओम के नाद के महत्व को नासा एवं विज्ञान भी सिद्ध कर चुका है। लयबद्ध नाद ही संगीत होता है। भारतीय धर्म संस्कृति में पूजन अर्चन से लेकर आरती एवं भजन, कीर्तन सभी ईश्वर की संगीतमय आराधना के माध्यम हैं। संगीत के लिए परंपरागत वाद्ययंत्र बनाए गए। जिनमें पीतल के घंटे से लेकर झांझ, मंजीरे, टिमकी, मृदंग, ढोल, नगाड़े, ढोलक, सारंगी, तुरही, बांसुरी जैसे कई प्रकार के वाद्य यंत्र ग्रामों में बनाए जाते थे। इसी कड़ी में जहां कुछ साल पहले घरों घर मंजीरे, ढोलक, पूजाघर में बड़ा शंख जरूर होता था। बड़े शहरों में आज यह पुराने जमाने के संगीत उपकरण पूरी तरह लुप्त हो गए हैं। वहीं छोटे शहरों से लेकर गांवों में भी अब कम ही देखने को मिलते हैं। इनकी जगह इलेक्ट्रानिक संगीत उपकरणों ने ले ली है। लेकिन कुछ जगह इन्ही में शुमार एक
हजारों वर्ष पुराना वाद्य यंत्र आज भी कुछ लोगों के प्रयास से चलन में है। ऐसे ही इमलिया पिपरिया निवासी रविदास चौधरी का परिवार दो पीढिय़ों से टिमकी बनाकर बाजार में 300 से 400 रुपए में बेचकर अपना परिवार का पेट पाल रहे हैं। यह परिवार लगभग 40 साल से टिमकी का निर्माण कर गांव गांव, बाजार बाजार जाकर बेचते हैं। एक दिन में दो टिमकी का निर्माण किया जा सकता हैं। यहां उल्लेखनीय है कि ग्रामीण अंचलों में आज भी गांव के बुजुर्गों की पहली पसंद टिमकी है। जिसे गांवों में खासकर जस और भजनों में बजाया जाता है। इसे मिट्टी के पात्र में जानवर की खाल चढ़ा कर बनाया जाता है। इसे बजाने के पहले जितना आग से गर्म करते हैं, यह उतनी ही मधुर बजती है। रविदास ने बताया कि इसे ग्रामीण क्षेत्र के लोग सबसे अधिक पसंद करते हैं। गांव के लोगों के वाद्य यंत्र जैसे मृदंग झांझ, मंजीरा, ढोलक सभी के साथ टिमकी जरूर बजाई जाती है। क्षेत्रीय लोकगीतों में भी कहा गया है कि टिमकी में गणेश, ढोलक में बैठी माई शारदा,,इससे टिमकी का महत्व आसानी से समझा जा सकता है। इसी के अलावा क्षेत्र में कुछ लोग ढोलक बनाकर बेचने का भी काम करते हैं। जिससे यह वाद्य यंत्र विक्रय को जहां अपनी रोजी रोटी का जरिया बनाए हुए हैं। वहीं परंपरागत वाद्ययंत्रों को भी जीवित रखने में अहम योगदान दे रहे हैं। लोगों का कहना है कि डिजीटल इंडिया के दौर में हम परंपरागत वाद्य यंत्र एवं पुरानी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। सरकारी प्रयास कर इन कलाओं को भी जीवित रखा जाना चाहिए।