गाडरवाराPublished: Sep 25, 2019 11:03:03 pm
narendra shrivastava
शासकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में प्राइवेट एंबुलेंस संचालक काट रहे चांदी
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गोटेगांव। शासकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में प्राइवेट एंबुलेंस वालों का डेरा जमा रहता है। यहां पर आने वाले गंभीर मरीज को डॉक्टर जबलपुर रेफर करते हैं। मरीज के परिजनों की स्थिति को देख कर डॉक्टर मेडिकल कॉलेज जबलपुर रेफर करने की अपेक्षा डॉक्टर से कहां ले जाना है कि सलाह लेते हैं तो डॉक्टर उनको उस प्राइवेट अस्पताल में पहुंचाते हैं जहां उनका सीधा संपर्क रहता है। सूत्रों का कहना है कि मरीज का वहां पर इलाज भले ही ठीक तरीके से नहीं हो मगर अस्पताल वालों ने प्राइवेट एंबुलेंस वालों को मरीज लाने पर चार हजार पहले प्रदान करते हैं इसके बाद भर्ती होने वाले मरीज का इलाज प्रारंभ करते हैं।
सूत्रों के अनुसार जबलपुर के एक प्राइवेट अस्पताल में मरीज पहुंचने के बाद चालक को जो राशि प्रदान की जाती है उसकी आधी राशि गोटेगांव आने पर संबंधित डॉक्टर मांगते हैं। यदि चालक उक्त राशि नहीं देता है तो उसके साथ वाद-विवाद करते हैं और उसके बाद से डॉक्टर एंबुलेंस चालक को मरीज नहीं देते हैं। इस अस्पताल में मरीज को कितना लाभ अर्जित हो रहा है इसका कोई भरोसा नहीं होता है मगर यहां पर पहुंचने पर मरीज पूरी तरह से लुट जाता है। इस समय सरकारी अस्पताल मरीज रेफर के नाम पर दलाली का अड्डा बन चुका है।
जानकारी के अनुसार प्राइवेट अस्पताल से मिलने वाली राशि के बंटवारे पर से कई बार अस्पताल परिसर में चालक और डॉक्टर के बीच वाद विवाद की स्थिति निर्मित हो चुकी है अंत में जब वाद विवाद बढ़ जाता है तो पुलिस के पास डॉक्टर शिकायत करके चालक के खिलाफ कार्रवाई करवाते हैं और ऐसे चालक की गाड़ी अस्पताल परिसर से हटाने के लिए कहते हैं। हाल ही में मरीजों को ले जाने पर से चालकों के बीच भी झगड़े की स्थिति निर्मित हो चुकी थी।
शासन ने मरीजों की सुविधा के लिए जो वाहनों की व्यवस्था की है उस वाहन वाले के आने के पूर्व मरीज को गंभीर हालत बता कर तत्काल ले जाने की बात करते हैं, जिससे मरीज के परिजन भी घबरा जाते हैं और वह सरकारी वाहन का इंतजार किए बगैर प्राइवेट एम्बुलेंस से मरीज को जबलपुर ले जाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। सेवा के नाम से मरीज जबलपुर रेफर होने पर लुट रहे हैं। इसका एक वाक्या सामने आया जब लाठगांव के एक मरीज प्राइवेट अस्पताल में पूरी तरह से लुट गया तो वह अपने मरीज को रुपए के अभाव में घर ले आया और उसकी मौत हो गई। मरीज के परिजनों ने बताया था कि जबलपुर मेडिकल अस्पताल में मरीज का इलाज ठीक से नहीं होने पर वह प्राइवेट अस्पताल में ले गया। मगर वहां पर रुपए लूटने के अलावा कुछ कार्य नहीं होता है उसके अनुसार ५० हजार रुपए खर्च करने के बाद भी कुछ हाथ नहीं लगा। वर्तमान समय में सरकारी अस्पताल में प्राइवेट वाहनों का अधिक जमावड़ा रहता है और वह मरीज को जबलपुर ले जाने के लिए आतुर रहते हैं।