script

इस छोटे से गांव के क्रांतिकारियों ने छुड़ा दिए थे अंग्रेजों के छक्के, अंग्रेजों ने तोपों से दागे थे गोले

locationफिरोजाबादPublished: Aug 14, 2018 08:45:47 am

— थाना नगला सिंघी क्षेत्र के गांव धीरपुरा के रणवांकुरों के बिना अधूरी है स्वतंत्रा की कहानी।

Dheerpura

Dheerpura

फिरोजाबाद। आजादी के समर में थाना नगलासिंघी क्षेत्र के गांव धीरगढ़ (अब धीरपुरा) के रणवांकुरों की वीर गाधा का बखान न हो तो इतिहास अधूरा ही रहेगा। भले ही इन देश भक्तों का नाम इतिहास के सुनहरे पन्नों में न लिखा गया हो, लेकिन आजादी दिलाने में इनका योगदान अहम है। चालीस के दशक में देश आजाद कराने को लेकर वीर सपूत अंग्रेजी हुकूमत से लोहा ले रहे थे। उस समय गांव धीरगढ़ में भी धूरीलाल सुनार, रामदयाल चक, महाराज सिंह, सोबरन सिंह, बौहरे ओमप्रकाश गुप्ता अंग्रेजों को देश से खदेडऩे के लिए साथियों के साथ मिलकर आंदोलन के साथ ही योजनाएं तैयार कर रहे थे।
धन अभाव आया था सामने
लड़ाई में धन का अभाव आड़े आया तो बौहरे ओमप्रकाश गुप्ता ने खजाने का मुंह खोल दिया। हथियार खरीदने से लेकर खाने-पीने तक के लिए उनके द्वारा धन मुहैया कराया जाने लगा। 1942 के करीब अंग्रेजों को खदेडऩे के लिए गांव में रखी राजा बिजेन्द्र सिंह की तोप से अंग्रेजों की सेना पर हमला बोल दिया। जिससे अंग्रेज भड़क गए और उन्होंने रात्रि में प्लान के तहत धीरगढ़ पर हमला कर पूरे गांव को तहस-नहस कर दिया। कई ग्रामीणों को अपने प्राणों की आहूत देनी पड़ी। बाद में उजड़े गांव को धीरपुरा के रूप में फिर से आबाद किया गया। अंग्रेजों को सबसे ज्यादा डर धीरपुरा के रणवांकुरों से ही लगता था। आजादी मिलने के बाद ओमप्रकाश बौहरे व रामदयाल चक ने स्वतंत्रता सेनानी के रूप में मिलने वाली पैंशन को लेने से इंकार करते हुए उसे देश हित में लगाने की अपील कांग्रेस सरकार से की।

रानी विक्टोरिया की प्रतिमा को पहनाई थी जूतों की माला
अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार से लोग इतने त्रस्त थे कि 1945 में आगरा लाल किले के समीप बनी रानी विक्टोरिया की प्रतिमा को जूतों की माला पहनाने के लिए सीढ़ी के सहारे धूरीलाल सुनार अपने एक साथी के पहुंच गए और माला पहनाकर ही वापस लौटे। जबकि प्रतिमा की सुरक्षा में दर्जनों अंग्रेजी सैनिक तैनात थे। सुबह जूतों की माला देख अंग्रेज अफसरों की बेचेनी बढ़ गई थी।
जब लाल किले पर फहराया था तिरंगा
टूंडला: इसे देश प्रेम की पराकाष्ठा ही कहेंगे कि 1946 में आगरा लाल किले के समीप अंग्रेजों भारत छोड़ों को लेकर भारतीयों द्वारा जुलूस निकाला जा रहा था। हर ओर अंग्रेजी सेना तैनात थी, लाल किले पर भी सुरक्षा के व्यापक इंतजाम थे, इसी दौरान अंग्रेजी सेना को चकमा देकर महाराज सिंह व उनके छोटे भाई सोबरन सिंह किले पर चढ़ गए और अंग्रेजी झंड़ा उतार तिरंगा लहरा दिया। किले पर तिरंगा लहरात देख अंग्रेजों के भी पैर उखड़ गए थे।
आज भी कुएं में पड़ी है नकटिया तोप
अंग्रेजी सेना पर जिस नकटिया तोप से हमला किया गया था उसे तलासने के लिए अंग्रेजों ने पूरे गांव को छान मारा था, लेकिन उन्हें तोप नहीं मिली। ग्रामीणों की माने तो तोप को अंग्रेजों से बचाने के लिए ग्रामीणों ने उसे गांव में बने बहुत गहरे एक कुएं में डाल दिया था। बताया जाता है कि तोप आज भी कुएं में पड़ी हुई है।

ट्रेंडिंग वीडियो