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केवल तीन लाख में बिक गया था बेंगलुरु शहर और दान में मिला मुंबई, अब ऐसे बन चुका बिजनेस हब

locationनई दिल्लीPublished: Sep 14, 2018 03:08:24 pm

Submitted by:

manish ranjan

मुंबई, कोलकाता, चेन्‍नई और बेंगलुरु ये वो शहर है जिन्होंने देश को छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने में अहम रोल निभाया हैं।

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केवल तीन लाख में बिक गया था बेंगलुरु शहर, दान में मिला मुंबई अब ऐसे बन चुका बिजनेस हब

नई दिल्ली। मुंबई , कोलकाता, चेन्‍नई और बेंगलुरु ये वो शहर है जिन्होंने देश को छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने में अहम रोल निभाया हैं। आज ये देश के सबसे बड़े और महंगे शहरों में से एक है। लेकिन एक समय था जब यहीं शहर कौड़ि‍यों के भाव में बेचे गए थे। मुबंई का तो ये हाल था की वो दहेज तक में दे दिया गया था। जिसे आज हम बेंगलुरु के नाम से जानते है वो एक समय में बेंगलुरु के नाम से जाना जाता था। इतना ही नहीं एक समय में बेंगलुरु को सिर्फ तीन लाख में ही बेच दिया गया था।
दहेज में दी गई थी मुंबई
ये बात मुगलों और अंग्रेजों के समय की है वो अक्सर शहरों को कौड़ि‍यों के भाव में बेचे या दि‍ए करते थे। इन बातों का जि‍क्र इति‍हास की कि‍ताबों में भी है। मुंबई जिस देश की मायानगरी कहा जाता है उसे इंग्‍लैंड के चार्ल्‍स द्वितीय को दहेज के रूप में दे दिया गया था। जब चार्ल्‍स द्वितीय की शादी पुर्तगाल की कैथरीन डी ब्रि‍गांजा से हुई थी। उस वक्त चार्ल्‍स द्वितीय को कैथरीन डी ब्रि‍गांजा के पिता ने मायानगरी दहेज में दी थी।
ईस्‍ट इंडि‍या कंपनी ने खरीदा था कलकत्ता
ईस्‍ट इंडि‍या कंपनी के एजेंट जॉब चारनोक सन 1690 में हुगली के तट पर कारोबार के मकसद से आए।वहां कारोबार करने के लिए उन्‍होंने तीन बड़े गांवों को स्‍थानीय जमींदार सबरना चौधरी से खरीद लि‍या। जिसमें कलकत्ता भी शुमार था। वो जो गांव जॉब चारनोक ने खरीदे थे वो है सुतानुती, गोविंदपुर और कालीकाता। कालीकाता जिसे अब हम कलकत्ता के नाम से जानते है।
तीन लाख में बिक गया था बेंगलुरु
चेन्‍नई जिसे पहले मद्रासपत्‍तनम कहा जाता था। इसे ईस्‍ट इंडि‍या कंपनी ने 22 अगस्‍त 1639 को वि‍जयनगर एम्‍पायर से खरीदा था। ईस्‍ट इंडि‍या कंपनी नेचेन्‍नई को 6 हजार पाउंड में खरीदा था। बेंगलुरु सन 1687 के दौरान मराठों के अधीन था। ये शि‍वाजी के सौतेले भाई एकोजी के पास था फिर उसे एकोजी ने इसे बेचने का फैसला लि‍या। एकोजी ने इसका सौदा मैसूर के शासक चि‍क्‍का देवराजा वाडि‍यार से 3 लाख रुपए में किया था। हालांकि‍ तभी औरंगजेब ने इसे हथि‍या लि‍या। जब मराठों ने इस पर दोबारा कब्‍जा करने के लि‍ए चढ़ाई की तो वाडि‍यार ने मुगलों के साथ दि‍या। मराठा हार गए मगर मुगलों ने उस सौदे को अपनी मंजूरी दे दी।
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