अयोध्या के गोलाघाट क्षेत्र स्थित सैयद बाड़ा इलाके में परंपरागत रुप से ताजियों को कर्बला में दफनाने की जगह सरयू नदी में प्रवाहित करने की परंपरा रही है इसी परंपरा के तहत शिया समुदाय के लोगों ने ताजियों को धार्मिक नगरी अयोध्या के पवित्र सरयू तट के किनारे सरयू जल में प्रवाहित किया. आज मोहर्रम की 10 वीं तारीख़ हैं जिसे अरबी ज़बान में यौमे आशुरा कहा जाता है .मोहर्रम का चांद देखने के बाद इस्लाम के मानने वाले इस 10 दिन को मोहम्मद साहब के नवासे हज़रत इमाम हुसैन और उनके 72 अहलो अयाल( रिश्ते दारो) की शहादत को याद करते हैं. इसी कड़ी में आज यानी यौमे आशुरा के दिन अयोध्या स्थित सैय्यद बाड़ा मोहल्ले से तजियादारो ने ग़मगीन माहौल में ताज़िया निकाली और नौहा पढ़ते हुए सीना जनी करते हुए सरयू के किनारे पहुंचे जंहा पर ताज़िये को रखकर या हुसैन अलविदा कहा और फिर ताजिया को सरयू नदी के सिपुर्द किया गया.
ताजियादार असलम ने बताया कि सैकड़ो वर्ष पुरानी यह परंपरा है जिसका निर्वाहन वे कर रहै हैं और आगे भी होता रहेगा . वही अयोध्या में मनाए जा रहे मोहर्रम के पर्व के मौके पर नगर क्षेत्र के अन्य इलाकों में रखी गई ताजिया को शीश पैगंबर मणि पर्वत स्थित कब्रिस्तान में दफनाया गया .कर्बला की पार्क सर जमीन पर या हुसैन की सदाओं के बीच मुस्लिम समुदाय के लोगों ने बेहद गमगीन माहौल में मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए उन्हें उनके 72 रिश्तेदारों और साथियों के साथ कर्बला की पाक सर जमीन पर सुपुर्द-ए-खाक किया