उन्होंने बुधवार को भारत-पाकिस्तान के बीच होने वाले मैच से पहले खुद को सरफराज का नहीं बल्कि भारतीय टीम का सबसे प्रशंसक बताया है। सरफराज अहमद के मामा महबूब हसन कहते कि एशिया कप के इस मुकाबले में भारत पाकिस्तान के बीच खेले जाने वाले मैच में भारतीय टीम की ही जीत होगी क्योंकि भारतीय टीम पाकिस्तानी टीम से बहुत बेहतर है और अच्छा प्रदर्शन कर रही है।
“दुआ है सरफराज अच्छा खेले, लेकिन जीते भारत”- उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की टीम का कप्तान उनका भांजा जरूर है, वो बहुत अच्छा खिलाड़ी है। वह अच्छा खेलता है। मेरी दुआ है कि वह कल भी अच्छा खेले, लेकिन जीत की दुआ तो हम भारत की टीम की ही करते हैं। महबूब हसन ने कहा कि मुल्क सबसे बड़ा होता है और हिंदुस्तान मेरा मुल्क है। सरफराज की आलोचना करने वाले पूर्व पाकिस्तानी क्रिकेट कप्तानों पर मामा हसन बेहद खफा नजर आए। उनका कहना है कि उनके भांजे की काबिलियत पूर्व क्रिकेटरों को हजम नहीं हो रही है। वो सिर्फ राजनीति कर रहे हैं।
2015 में सरफराज की शादी में हुई थी मामा की मुलाकात- उन्होंने बताया कि सरफराज से उनकी आखिरी मुलाकात मई 2015 में उस समय हुई थी जब वो उसकी शादी में पाकिस्तान गये थे। वो यह भी कहने से नहीं चूके कि पाकिस्तान हमारे मुल्क जैसा कभी नहीं हो सकता। महबूब हसन के मुताबिक़ पकिस्तान में अभी भी मोहाजिरों (हिंदुस्तान से गए मुसलमान) से दूरी रखी जाती है और उनको घृणा से देखा जाता है। उन्होंने कहा कि 2015 में 19 मई को वे सरफ़राज़ की शादी में कराची गए थे । उस वक्त भी सरफ़राज़ के मोहाजिर होने की बात पाकिस्तानी मीडिया ने उठाई थी। सरफराज, महबूब हसन की पाकिस्तान के कराची शहर में रहने वाली बहन अकीला बानो का बेटा है।
सरफराज का यूपी कनेक्शन- असल में महबूब हसन उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ जिले के दिलेरगंज, कुंडा के मूलरूप से रहने वाले हैं, लेकिन 1995 में हसन की नौकरी इटावा में लग जाने से पूरा परिवार यही रह रहा है। बकौल हसन 1991 में उनकी शादी के दौरान ही करीब 4 साल की उम्र में सरफराज हिंदुस्तान आया था। उस समय शादी इलाहाबाद में हुई थी। सरफराज की मां अकीला बानो एक दफा 2010 में इटावा के डा.भीमराव अंबेडकर कृषि इंजीनियरिंग कालेज आ चुकी है, लेकिन बीजा नियमावली के मुताबिक उन्हें सिर्फ कुंडा में ही रूकने की अनुमति थी इसलिए वह आकर जल्द ही चली गई थी। सरफराज बचपन से ही क्रिकेट का दीवाना था। वह स्कूल में पढ़ाई करने के बजाय ग्राउंड में खेलता था । कई बार टीचर उसकी शिकायत लेकर घर आए। उसे घरवालों ने बहुत समझाया कि मेहनत से पढ़ाई करो। लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ।
बड़े भाई ने सरफराज का दिया साथ- उसके दादा एजूकेशन बोर्ड के चेयरमैन थे। एक दिन उन्होंने सरफराज के पिता शकील अहमद से कहा कि अगर ये (सरफराज) क्रिकेट खेलना चाहता हैं, तो इसे खेलने से मत रोको। उस दिन के बाद से सरफराज को खेलने से किसी ने नहीं रोका। सरफराज के बड़े भाई ने घर के बिजनेस में अपने पिता का हाथ बंटाना शुरू कर दिया। मेरी जब भी सरफराज से बात होती है, तो वह कहता है कि मामू, अगर बड़े भइया ने साथ नहीं दिया होता तो मैं क्रिकेटर नहीं बन पाता। पाकिस्तान की अंडर-19 टीम के लिए सलेक्शन होने के बाद सरफराज ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। क्रिकेट के प्रति उसके समर्पण और जुनून को देखकर पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस ने उसे अपने यहां नौकरी दी।