सूप या मांड का उल्टी दिशा में घूमना विस्को इलास्टिसिटी यानी तरल वस्तुओं में लसलसेपन और लोच का सटीक उदाहरण है। एक बार जब आप सूप को हिलाना बंद कर देते हैं तो सूप की वे तहें जो बर्तन से सीधे संपर्क में हैं, सबसे पहले रुक जाती हैं लेकिन सूप की वे तहें जो सतहें पर हैं, वे अपने लसलसेपन के कारण अब भी घूमती रहती हैं। बर्तन से लगी सूप की रुकी हुई तहें अब घूमती तहों पर ब्रेक लगाती हैं और वे रुककर उल्टी दिशा में घूमती हैं। इससे सूप में एक स्प्रिंगनुमा कंपन पैदा हो जाता है। सूप के लसलसेपन के कारण थोड़ी देर में यह कंपन खत्म हो जाता है। अगर कोई तरल, जैसे पेस्ट बहुत लसलसा है तो उसमें घुमाव केवल एक ही बार उलटकर खत्म हो जाएगा।
कागज सेल्युलोज के रेशों का बना होता है। जब आप कागज को फाड़ते हैं तो ये रेशे एक के बाद एक टूटते हैं। इससे कागज में कंपन होने लगता है, जो ध्वनि तरंगों के रूप में हमें सुनाई देता है। जब आप कागज को तेजी से फाड़ते हैं तो आप बहुत सारे रेशे एक साथ तोड़ते हैं, जिससे कंपन की तीव्रता बढ़ जाती है और तेज आवाज सुनाई पड़ती है।
सीटी जिस कारण बजती है, उसे छेद आवाज (होल टोन) कहा जाता है। जब हवा तेजी से किसी छेद से गुजरती है तो उसमें गोल चक्कर खाती भंवरें बनती हैं, जिनसे सीटी की आवाज पैदा होती है। चाय की केतली की सीटी भी ***** टोन के प्रभाव का एक अच्छा उदाहरण है। ऐसी सीटी में दो छेद होते हैं, जिनके बीच थोड़ी जगह होती है
ऊंचाई पर तापमान दो कारणों से कम होता है। पहला, यद्यपि हवा सूर्य की तमाम खतरनाक किरणें (अल्ट्रा वायलेट, एक्स रे आदि) सोख लेती हैं लेकिन वह सूर्य की गर्मी को अधिक नहीं सोखतीं। पृथ्वी की तरह (और हमारी चमड़ी) ही सूर्य की गर्मी सोखती है और संवाहन से आस-पास की हवा को गर्म करती है। दूसरा, ऊंचाई के साथ-साथ हवा का घनत्व और दबाव दोनों कम होते हैं। इसके परिणामस्वरूप जमीन से सटी हवा गर्म होने के बाद फैलती है और ऊपर उठते-उठते ठंडी होती जाती है। यह गर्म हवा जमीन से बहुत ऊपर नहीं उठ पाती और धरती और ऊपर की ठंडी हवा की परतों के बीच ठहर जाती है।