इंटरनेशनल स्टूडेंट्स यूके के लिए महत्वपूर्ण एक्सपोर्ट मार्केट की तरह है, क्योंकि उनके आने से देश को आर्थिक मुनाफा होता है। वर्ष 2015 में उनकी एक्सपोर्ट वैल्यू १७.६ बिलियन पाउंड थी। रिपोर्ट में लिखा गया है कि यूके में भारतीय स्टूडेंट्स की गिनती पिछले कुछ सालों में तेजी से कम हो रही है। जबकि चीन से आने वाले स्टूडेंट्स की गिनती में कोई बदलाव नहीं आया है। वर्ष 2010-11 में जहां यूके में 24000 भारतीय स्टूडेंट्स पढऩे गए थे, वहीं 2016-17 में यह गिनती घटकर केवल 10000 स्टूडेंट्स रह गई थी। इसमें करीब ११ प्रतिशत की गिरावट देखी गई।
इस रिपोर्ट में लिखा गया है कि यह गिरावट शायद कुछ स्पॉन्सर लाइसेंस रद्द करने और पोस्ट-स्टडी वर्क ऑफर में किए गए बदलाव के कारण है। हालांकि इसमें यह भी लिखा गया है कि भारतीय प्रेस में यूके और यहां पढऩे को लकर कुछ खराब कवरेज दिया गया है। हालांकि इस रिपोर्ट में यह सिफारिश की गई है कि टैलेंटेड एप्लीकेंट्स को वर्क वीजा देने की प्रक्रिया को आसान किया जाए, ताकि भारत सहित अन्य देशों से स्टूडेंट्स को आकर्षित किया जा सके। इसके अलावा यूके ने ग्लोबल ग्रेजुएट टेलेंट वीजा का भी प्रस्ताव रखा है। इससे क्वालिफाइड विदेशी स्टूडेंट्स को ग्रेजुएशन के बाद दो साल तक यूके में काम करने का परमिट मिल सकेगा।
हालांकि यूके यूनिवर्सिटीज के प्रेसिडेंट प्रोफेसर जेनेट बेयर ने कहा कि ऑर्गेनाइजेशन इन सिफारिशों से खुश नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर यूके इस तरह का इमिग्रेशन सिस्टम अपनाता है तो इससे देश में विदेशी स्टूडेंअ्स की संख्या केवल बढ़ेगी।