याचिकाकर्ताओं के अनुसार असावधानी के कारण उन्होंने स्नातक की डिग्री के तीन वर्ष में पाए गए अंको के औसत अंक की बजाय अंतिम वर्ष में पाए गए नंबर लिखे थे। कोर्ट ने कहा कि अलग-अलग शिक्षण संस्थानों में स्नातक की डिग्री में पाए गए अंकों को एक समान आधार नहीं बनाया जाता। कुछ स्थानों पर तीन वर्षों के अंकों का औसत देखा जाता है तो कुछ स्थानों पर अंतिम वर्ष का अंक देखा जाता है।
कोर्ट ने कहा कि कम से कम महाराष्ट्र सरकार के अंतर्गत आने वाले शिक्षण संस्थानों में एक समान प्रवेश प्रक्रिया होनी चाहिए। प्रवेश प्रक्रिया में समानता लाने की आवश्यकता है। कोर्ट ने कहा कि छात्रों को प्रवेश देते समय कालेजों और विश्वविद्यालयों को ‘अति-तकनीकी’ प्रक्रिया को नहीं अपनाना चाहिए। अदालत ने दोनों याचिकाकर्ता छात्रों को संबंधित स्कूल में प्रवेश देने का आदेश दिया।