अगर टायर में साधारण रबर लगा दिया जाए तो यह जल्दी ही घिस जाएगा और ज्यादा दिन नहीं चल पाएगा इसलिए इसमें काला कार्बन और सल्फर मिलाया जाता है जिससे कि टायर काफी दिनों तक चल सके। काले कार्बन की भी कई श्रेणियां होती हैं और रबर मुलायम होगी या सख्त यह इस पर निर्भर करेगा कि कौनसी श्रेणी का कार्बन उसमें मिलाया गया है। मुलायम रबड़ के टायरों की पकड़ मजबूत होती है लेकिन वो जल्दी घिस जाते हैं, जबकि सख्त टायर आसानी से नहीं घिसते और ज्यादा दिन तक चलते हैं। टायर बनाते वक्त इसमें सल्फर भी मिलाया जाता है और कार्बन काला होने के कारण यह अल्ट्रा वॉयलेट किरणों से भी बच जाता है।
प्रश्न (2) आखिर लिफ्ट में आइना क्यों लगाया जाता है?
दरअसल इसके पीछे वजह है हमारी बेसब्री। कई बार बहुमंजिला इमारतें इतनी ऊंची होती हैं कि हमें ऊपर पहुंचने में थोड़ा समय लग जाता है। इस दौरान लिफ्ट कई बार बीच में रुकती है। शुरुआती दिनों में लिफ्ट में लोगों को कुछ इसी तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा था, उन्हें ऐसा लगता था कि लिफ्ट में उनका काफी समय बर्बाद हो जाता है। इसके अलावा कई लोग तो लिफ्ट में चढऩे से भी डरा करते थे। सालों की मेहनत के बाद तैयार की गई लिफ्ट्स में लोगों को आ रही इस तरह की परेशानियों का हल निकाल पाना मुश्किल हो रहा था।
लोगों की इस सोच ने इंजीनियर्स की सिरदर्दी बढ़ा दी थी, जिसके बाद विशेषज्ञ लिफ्ट की स्पीड बढ़ाने पर विचार करने लगे। किसी ने ये सुझाव दिया कि क्यों न लिफ्ट में आइना लगा दिया जाए। इससे लिफ्ट में चढऩे वाले लोग खुद को सजाने-संवारने में व्यस्त रहेंगे, जिससे लिफ्ट की गति पर उनका ध्यान नहीं जाएगा। शुरुआती दिनों में इस सुझाव को ट्रायल के रूप में इस्तेमाल किया गया, इस दौरान ये फॉर्मूला कारगर साबित हुआ, जिसके बाद दुनियाभर में लिफ्ट्स में शीशों का इस्तेमाल किया जाने लगा। अगली बार जब आप लिफ्ट में चढ़ेंगे तो अपने साथी के साथ शीशा देखते हुए ये जरूर कहेंगे, क्या तुम्हें पता है लिफ्ट में आइना क्यों लगाया जाता है।
प्रश्न (3) एफिल टावर क्यों बनी?
फ्रांस के पेरिस शहर में वर्ष 1889 में बनाई गई एफिल टावर आज यह फ्रांस की सबसे बड़ी प्रतीक है। इसका नाम इंजीनियर गुस्ताव एफिल के नाम पर है, जिन्होंने इसे डिजाइन किया था।