गन्ना किसान तय करता है पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हार जीत
आज पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर , मेरठ, बागपत, गाजियाबाद , गौतम बुद्ध नगर में मतदान हैं। ये पूरी बेल्ट गन्ना किसानों की कहलाती है। इन आठों जिलों में एक गौतमबुद्घनगर को छोड़ दिया जाए तो गाजियाबाद से लेकर सहारनपुर तक 3 लाख से ज्यादा गन्ना किसानों के परिवार हैं। यानि पूरे क्षेत्र की बात करें तो एक 16 लाख से ज्यादा वोट गन्ना किसानों की हैं। जो पूरे क्षेत्र में चुनाव के दौरान काफी बड़ा फर्क डालते हैं। सबसे ज्यादा गन्ना किसान बागपत, मेरठ, बिजनौर और मुजफ्फरनगर में हैं। ऐसे में इन इलाकों में गन्ना किसानों का दबदबा भी ज्यादा है।
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इनती होती है कमाई
आज उत्तरप्रदेश के जिन जिलों में मतदान हो रहा है उन जिलों में गन्ने का रकबा 15,000 एकड़ है। अगर बात कमाई की बात करें तो एक किसान की एक बीघा पर गन्ने पर लागत 13 हजार रुपए आती है। जिसपर उसकी आमदनी 20 हजार रुपए की होती है। यानी एक बीघा पर गन्ना किसान को 7000 हजार बचते हैं। लेकिन विडंबना ये है कि किसानों को उसका रुपया दो सालों में मिलता है। सालाना के हिसाब से एक गन्ना किसान की 3500 रुपए प्रति बीघा की कमाई होती है।
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केंद्र, राज्य और मिलों पर है किसानों का हजारों करोड़ का बकाया
गन्ना किसान पिछले कुछ सालों से प्रदेश और केंद्र सरकार से नाराज क्यों हैं? इसका कारण है गन्ना किसानों केंद्र, राज्य और मिलों पर बकाया। आंकड़ों पर बात करें तो गन्ना किसानों केंद्र और राज्य सरकारों पर 10 हजार करोड़ रुपए का बकाया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिन जिलों में आज चुनाव हो रहे हैं वहां पर करीब 10 चीनी मिलें हैं। उन पर गन्ना किसानों का बकाया करीब 1500 करोड़ रुपए है।
गन्ना किसानों की इतनी समर्थन मूल्य की है मांग
गन्ना किसानों की मांग समर्थन मूल्य बढ़ाने की रही है। जानकारों की मानें तो मायावती ने अपने शासनकाल में सबसे अधिक समर्थन मूल्य में इजाफा किया था। उस वक्त मायावती सरकार ने गन्ने पर 40 रुपए प्रति क्विंटल का इजाफा किया था। उसके बाद सपा सरकार आई और चली गई। अब भाजपा की सरकार को दो साल पूरे हो गए हैं। लेकिन किसी ने भी गन्ने का समर्थन मूल्य बढ़ाने के बारे में विचार नहीं किया। मौजूदा समय में गन्ने का समर्थन मूल्स 325 रुपए प्रति क्विंटल है। जबकि गन्ना किसान 400 रुपए प्रति क्विंटल की डिमांड कर रहे हैं।
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सिर्फ राष्ट्रवाद से नहीं भरता किसानों के परिवार का पेट
पश्चिमी यूपी के किसान उमेश शर्मा ने कहा कि गन्ना किसान हमेशा से उपेक्षित रहा है। पश्चिमी यूपी का किसान गन्ना भी बोता और रुपया भी समय पर नहीं मिलता। चुनाव के दौरान वादे सभी करते हैं। लेकिन इस बार किसान काफी समझदार हो गया है। पॉलिटिकल पार्टियों को इस बात पर ध्यान देना होगा कि सिर्फ राष्ट्रवाद और जातिवाद से किसान के परिवार का पेट नहीं भरता है। वहीं दूसरी ओर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान नेता हरविंदर सिंह ने कहा कि पिछले पांच सालों में गन्ना किसानों की मांगों को लेकर केंद्र सरकार ने बिल्कुल भी नहीं सुनी। 2014 में कई वादों के साथ गन्ना किसानों ठगा गया। लेकिन इस बार गन्ना किसान बिल्कुल भी ठगा नहीं जाएगा। इस बार गन्ना किसान को पता है कि उसे क्या करना है?
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