क्लोरीनेटर की खरीदी पर तब नगर निगम में जमकर बवाल भी मचा था। कांग्रेसी पार्षदों ने मशीन खरीदी का प्रस्ताव खारिज कर दिया था। इसके बाद भी निगम प्रशासन द्वारा आनन-फानन में ऑर्डर देकर मशीन मंगा ली गईथी। कांग्रेसी पार्षदों ने खरीदी में भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाएथे।
पूर्व पार्षद विल्सन डिसूजा की मानें तो सामान्य सभा में उच्च क्षमता की एक क्लोरीनेटर मशीन खरीदने का प्रस्ताव शासन को भेजा गया था। इस शासन ने राशि देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद सामान्य सभा में प्रस्ताव पारित कर मेक-500 कम क्षमता की 6 मशीनें खरीद ली गईं।
पूर्व पार्षद की मानें तो क्लोरीनेटर की खरीदी से लेकर इंस्टालेशन सभी संदेह के दायरे में हैं। उन्होंने बताया कि मशीनें 16 अगस्त 2007 को गोवा से दुर्ग के लिए रवाना की गई थीं। निगम के दस्तावेज में ये मशीनें 27 अगस्त को इंस्टॉल कर टेस्ट कर ली गई थीं।
पानी के ट्रीटमेंट के लिए नगर निगम को हर महीनें 900 किलो लीटर के 5 सिलेंडर की जरूरत पड़ती है। इन सिलेंडरों में हर साल करीब 5 लाख रु पए खर्च होता है। पानी में ट्रीटमेंट के लिए 2.5 पीपीएम (पाट्र्स पर मिलियन) क्लोरीन गैस मिलाना पड़ती है।
लाखों खर्च कर खरीदे गए क्लोरीनेटर इंस्टॉल कर उपयोग किए जाते तो न सिर्फ क्लोरीन सिलेंडर में खर्च की जा रही राशि की बचत होती बल्कि गैस रिसने जैसे हादसे की भी नौबत नहीं आती। जानकारों की माने तो गैस लोड करने व निकालने के दौरान अक्सर रिसाव का खतरा रहता है।
इस संबंध में जलगृह विभाग के प्रभारी देवनारायण चंद्राकर का कहना है कि मामला मेरे कार्यकाल का नहीं है और इसकी जानकारी भी मुझे नहीं है। फिलहाल प्लांट में ऐसी किसी मशीन की व्यवस्था नहीं है, इसलिए क्लोरीन गैस खरीदकर इस्तेमाल किया जा रहा है। प्लांट में जो भी खामियां हैं उसे ठीक कराया जा रहा है।