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13 साल पहले लिक्विड क्लोरीन बनाने 88 लाख की ६ मशीन खरीदी, तब भी हर साल गैस पर 5 लाख खर्च

locationदुर्गPublished: Jan 21, 2019 12:32:02 am

Submitted by:

Naresh Verma

निगम के फिल्टर प्लांट में खामियों के बाद अब फिजूलखर्ची का भी मामला सामने आया है। निगम ने 13 साल पहले लिक्विड क्लोरीन बनाने के लिए 88 लाख खर्च कर 6 क्लोरीनेटर मशीनों की खरीदी की।

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13 साल पहले लिक्विड क्लोरीन बनाने 88 लाख की ६ मशीन खरीदी, तब भी हर साल गैस पर 5 लाख खर्च

दुर्ग . निगम के फिल्टर प्लांट में खामियों के बाद अब फिजूलखर्ची का भी मामला सामने आया है। निगम ने 13 साल पहले लिक्विड क्लोरीन बनाने के लिए 88 लाख खर्च कर 6 क्लोरीनेटर मशीनों की खरीदी की। यह मशीनें अब तक इंस्टॉल तक नहीं की जा सकी और कबाड़ में पड़ी हैं। इसकी जगह क्लोरीन गैस खरीदकर पानी का ट्रीटमेंट किया जा रहा है। इसके चलते गैस खरीदी में सालाना करीब 5 लाख रुपए खर्च किया जा रहा है।
नगर निगम ने सितंबर 2005 में रायपुर के एक डीलर से ये मशीन करीब 14 की दर से खरीदी थी। ये मशीनें गैस हादसे वाली 24 एमएलडी फिल्टर प्लांट और नया बस स्टैंड स्थित 11 एमएलडी के पुराने फिल्टर प्लांट में लगाया जाना था। निगम का दावा था कि इन मशीनों से सोडियम क्लोराइड यानि साधारण नमक का उपयोग कर लिक्विड क्लोरीन बनाए जाने और पानी का ट्रीटमेंट किएजाने का दावा किया गया था। जानकारों की मानें तो इनमें से एक भी मशीन इंस्टॉल कर चालू नहीं किया जा सका। ये मशीने अब कबाड़ के रूप में 24 एमएलडी फिल्टर प्लांट में पड़े हैं।
खरीदी पर मचा था बवाल
क्लोरीनेटर की खरीदी पर तब नगर निगम में जमकर बवाल भी मचा था। कांग्रेसी पार्षदों ने मशीन खरीदी का प्रस्ताव खारिज कर दिया था। इसके बाद भी निगम प्रशासन द्वारा आनन-फानन में ऑर्डर देकर मशीन मंगा ली गईथी। कांग्रेसी पार्षदों ने खरीदी में भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाएथे।
शासन से इंकार फिर भी खरीदी
पूर्व पार्षद विल्सन डिसूजा की मानें तो सामान्य सभा में उच्च क्षमता की एक क्लोरीनेटर मशीन खरीदने का प्रस्ताव शासन को भेजा गया था। इस शासन ने राशि देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद सामान्य सभा में प्रस्ताव पारित कर मेक-500 कम क्षमता की 6 मशीनें खरीद ली गईं।
कागज में कर लिया इंस्टालेशन
पूर्व पार्षद की मानें तो क्लोरीनेटर की खरीदी से लेकर इंस्टालेशन सभी संदेह के दायरे में हैं। उन्होंने बताया कि मशीनें 16 अगस्त 2007 को गोवा से दुर्ग के लिए रवाना की गई थीं। निगम के दस्तावेज में ये मशीनें 27 अगस्त को इंस्टॉल कर टेस्ट कर ली गई थीं।
हर महीने लगते हैं ५ क्लोरीन सिलेंडर
पानी के ट्रीटमेंट के लिए नगर निगम को हर महीनें 900 किलो लीटर के 5 सिलेंडर की जरूरत पड़ती है। इन सिलेंडरों में हर साल करीब 5 लाख रु पए खर्च होता है। पानी में ट्रीटमेंट के लिए 2.5 पीपीएम (पाट्र्स पर मिलियन) क्लोरीन गैस मिलाना पड़ती है।
तो नहीं आती हादसे की नौबत
लाखों खर्च कर खरीदे गए क्लोरीनेटर इंस्टॉल कर उपयोग किए जाते तो न सिर्फ क्लोरीन सिलेंडर में खर्च की जा रही राशि की बचत होती बल्कि गैस रिसने जैसे हादसे की भी नौबत नहीं आती। जानकारों की माने तो गैस लोड करने व निकालने के दौरान अक्सर रिसाव का खतरा रहता है।
मेरे कार्यकाल का मामला नहीं है
इस संबंध में जलगृह विभाग के प्रभारी देवनारायण चंद्राकर का कहना है कि मामला मेरे कार्यकाल का नहीं है और इसकी जानकारी भी मुझे नहीं है। फिलहाल प्लांट में ऐसी किसी मशीन की व्यवस्था नहीं है, इसलिए क्लोरीन गैस खरीदकर इस्तेमाल किया जा रहा है। प्लांट में जो भी खामियां हैं उसे ठीक कराया जा रहा है।
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