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दुर्ग कोर्ट के इतिहास में यह पहला प्रकरण, जहां सच उगलवाने जज पूछेंगे 1500 से ज्यादा प्रश्न, मुख्य सचिव भी हुए थे तलब

locationदुर्गPublished: Jul 25, 2018 11:22:14 am

Submitted by:

Dakshi Sahu

बहुचर्चित अंत्यावसायी प्रकरण में न्यायालय में मुलजिम बयान लिया जा रहा है। यह मामला 22 साल पुराना है।

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दुर्ग कोर्ट के इतिहास में यह पहला प्रकरण, जहां सच उगलवाने जज पूछेंगे 1500 से ज्यादा प्रश्न, मुख्य सचिव भी हुए थे तलब

दुर्ग. बहुचर्चित अंत्यावसायी प्रकरण में न्यायालय में मुलजिम बयान लिया जा रहा है। यह मामला 22 साल पुराना है। प्रकरण में 25 मई को मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव बसंत प्रताप सिंह भी बयान देने न्यायालय में हाजिर हुए थे।
इस प्रकरण में लगातार एक दिन में तीन मुलजिमों का बयान लिया जा रहा है। सुबह न्यायालय शुरू होने से लेकर शाम को बंद होने तक सुनवाई जारी रहती है। प्रकरण से संंबंधित प्रश्नों का जवाब देते आरोपियों का पसीना भी निकल जाता है।
जिला अंत्यावसायी सहकारी समिति में 19 लाख रुपए के घोटाले का खुलासा 1996 में हुआ था। तब मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव बसंतप्रताप सिंह दुर्ग के कलेक्टर थे। प्रकरण के मुताबिक जिला अंत्यावसायी विभाग ने हितग्राहियों को ऋण दिया था।
प्रकरण के आधार पर ऋण पर स्वीकृत अनुदान राशि का चेक विभाग ऋण देने वाले सबंधित बैंक को जारी करता था, लेकिन विभाग द्वारा जारी अनुदान राशि के चेक को कूटरचित पत्र लिखकर बैंक से वापस लिया
गया।
बाद में सिविक सेंटर भिलाई स्थित यूकों बैंक और चंदखुरी स्थित ग्रामीण बैंक में विभाग के नाम पर फर्जी तरीके से खाता खोलकर राशि का आहरण किया गया। अनुदान राशि को गलत तरीके से आहरण करने का खेल अंत्यावसायी समिति के तत्कालीन सीईओ जेसी मेश्राम के कार्यकाल में शुरू हुआ था।
जेसी मेश्राम का स्थानांंतरण होने के बाद उनकी जगह एनसी गजभिए ने पदभार ग्रहण किया। कुछ दिन बाद ही नेहरु नगर स्थित यूनियन बैंक के अधिकारियों ने सीईओ से यह कहते हुए मुलाकात की कि उनके पास ८.८३ लाख का ड्राप्ट क्लीयरेंस के लिए आया है। यह ड्राफ्ट यूको बैंक से आया है।
सीईओ ने यूको बैंक में खाता नहीं होने के बाद भी खाता का संचालन पर आश्चर्य व्यक्त किया। पड़ताल की गई तो सच सामने आया। फर्जी हस्ताक्षर से अनुदान की राशि का आहरण किया जा रहा है।
कलेक्टर को रोकनी पड़ी थी जांच
इस मामले में तत्कालीन कलक्टर बीपी सिंह ने भी जांच के आदेश दिए थे। बाद में कलक्टर ने बीच में ही जांच को बंद करने के आदेश दिए। जांच रोकने का मुख्य कारण संभाग आयुक्त द्वारा सीआर नवरत्न कमेटी का गठन था। नवरत्न कमेटी की जांच रिपोर्ट ही एफआईआर का आधार बना।
जिसके कार्यकाल में गड़बड़ी वह है प्रकरण से उन्मुक्त
इस प्रकरण में १९९६ में सीईओ रहे जेसी मेश्राम को भी आरोपी बनाया गया था। बाद में जेसी मेश्राम ने हाईकोर्ट में परिवाद प्रस्तुत किया। सुनवाई के दैरान हाईकोर्ट ने मेश्राम को प्रकरण से उन्मुक्त कर दिया।
ये है आरोपी
नीलम चंद गजभिये, राजकिशोर तिवारी, पिताम्बरराम यादव, मानवेन्द्र चक्रवर्ती, शनिराम सुमन, केएसजी वर्गीस, मोमलाल, किसुन मेश्राम, मोहन अग्रवाल, मनोज सोनी, रवि उर्फ शेखर टंडन, संतोष यादव, सुदेश मराठे।

्मामले की जांच करने वाले अधिकारी जेल में
इस प्रकरण की जांच रायपुर संभाग आयुक्त के निर्देश पर सीआर नवरत्न ने की थी। जांच के बाद उन्होंने दुर्ग सिटी कोतवाली में आरोपियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराया। नवरत्न भी अत्यावसायी समिति दुर्ग में सीईओ रहे।
जानकारी के मुताबिक जांच अधिकारी वर्तमान में जेल में है। कोरबा में किए आर्थिक अनियमितता के मामले में न्यायालय ने उसे दोषी ठहराया है। न्यायालय ने अमानत में खयानत करने की धारा तहत उसे ४ वर्ष कारावास की सजा सुनाई है।
कई मामलों में है महत्वपूर्ण प्रकरण
बचाव पक्ष के अधिवक्ता अमर चोपड़ा ने बताया कि यह प्रकरण कई मायनों में महत्वपूर्णहै। वे जिला न्यायालय में वे ३२ वर्ष से वकालत कर रहे हैं। इस दौरान कई बहुचर्चित प्रकरणों में पैरवी की।
आम तौर पर मुलजिम बयान का प्रश्न ३०० से ५०० के बीच ही रहता है। जिला न्यायालय के इतिहास में यह पहला प्रकरण है जिसमें १५२१ प्रश्नों की श्रंृखला है। वही इस प्रकरण में गवाहों की सूची भी लंबी थी। सुनवाई के दौरान १०१ गवाहों का बयान न्यायालय में दर्ज कराया गया।
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