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शरद पूर्णिमा विशेष : कभी घर-घर से एकत्रित करते थे काली-कमोद

locationडूंगरपुरPublished: Oct 13, 2019 10:48:42 am

Submitted by:

milan Kumar sharma

वागड़ के घर-घर में बनती है शरद पूर्णिमा पर खीर का प्रसाद, तो धवल चांदनी में सुई में पिरोते हैं धागा

शरद पूर्णिमा विशेष : कभी घर-घर से एकत्रित करते थे काली-कमोद

शरद पूर्णिमा विशेष : कभी घर-घर से एकत्रित करते थे काली-कमोद

मिलन शर्मा @ डूंगरपुर. शरद पूर्णिमा पर चन्द्रमा सोलह कलाओं से युक्त होता है। शरद पूर्णिमा को लेकर प्रदेश सहित देश के अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न परम्पराओं का निर्वहन होता है। वहीं, दक्षिणी राजस्थान के डूंगरपुर जिले में भी संस्कृति से जुड़ी दो अनूठी परम्पराओं का निर्वहन होता है। इस दिन धवल रोशनी में छत पर चढ़कर बुजुर्गों की उपस्थिति में सुई में धागा पिरोया जाता है। वहीं, विशेष खीर का प्रसाद भी बनाया जाता है। एक दौर था कि घर से घर से महिलाएं चावल की विशेष किस्म काली कमोद को एकत्रित करती थी और इससे खीर बनाती थी। इस खीर का स्वाद बुजुर्गों की जुबान पर आज भी चढ़ा हुआ है। शरद पूर्णिमा संस्कृति से जुड़ी इन्हीं दो परम्पराओं से जुड़े विभिन्न पहलुओं को छूते हैं…

गाय के दूध के साथ ओखली में कूटती थी चावल
वयोवृद्ध महिलाएं बताती हैं कि पहले शरद पूर्णिमा का उत्सव समाज स्तर पर मनाया जाता था। शाम होते ही महिलाएं ताजा काली कमोद (चावल की किस्म) को घर-घर से एकत्र करती थी। सांझ ढलने के बाद इन चावलों को अच्छी तरह धोकर बड़ी ओखली में डालती और कृष्ण भक्ति से ओतप्रोत भजन-कीर्तन करते हुए उन चावलों को कूटती थी। बाद में गाय के दूध के साथ कूटे हुए इन चावलों (पौहों) की खीर बनाकर सार्वजनिक चौक अथवा मंदिर की छत पर रखते थे। चन्द्रोदय से लेकर मध्य रात्रि के बाद से कुछ समय तक यह खीर रखी जाती। इस दौरान महिलाएं सामूहिक भजन-कीर्तन करती थी। साथ ही सुई में धागा पिरोया जाता था। वहीं, पुरुष वर्ग बैठकर सामाजिक विषयों पर चर्चा आदि करते थे। बाद में यह खीर पत्तों के दोनों (पत्तों की कटोरी) में बांटी जाती थी।

शरद पूर्णिमा और खीर
आयुर्वेद : आयुर्वेद के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन खीर को चन्द्रमा की किरणों में रखने से उसमें औषधीय गुण उत्पन्न हो जाते हैं। इससे कई असाध्य रोग दूर होते हैं। यह खीर खाने का अपना औषधीय महत्व भी है। इन दिनों दिन में गर्मी और रात में सर्दी होती है। ऋतु परिवर्तन के कारण पित्त प्रकोप हो सकता है। खीर खाने से पित्त शांत रहता है। शरद पूर्णिमा की रात में खीर का सेवन करना इस बात का प्रतीक है कि शीत ऋतु में हमें गर्म तासिर के पदार्थों का सेवन करना चाहिए। क्योंकि, उनसे ऊर्जा मिलती है। यह खीर मिट्टी के बर्तन में रख अगले दिन बच्चों को खिलाई जाए, तो मानसिक विकार दूर होते हैं।

वैज्ञानिक भी है महत्व
दूध में लेक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व चन्द्र किरणों में अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। कई जगह यह खीर चांदी के पात्र में भी बनाई जाती है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और शरीर के किटाणु नष्ट होते हैं।

यह है शरद पूर्णिमा का महत्व
धर्म शास्त्र अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। धर्मशास्त्रों के मुताबिक धवल रोशनी में मां लक्ष्मी अपने वाहन पर बैठकर पृथ्वी पर भ्रमण करने आती है। रात्रि जागरण एवं कीर्तन करने वाले भक्तों पर लक्ष्मी प्रसन्न होती है। शास्त्रों के अनुसार इसी दिन मां लक्ष्मी और महर्षि वाल्मीकि का जन्म हुआ था। भगवान शिव और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म भी इस दिन हुआ है।

मध्य रात्रि पिरोते हैं सुई में धागा
शरद पूर्णिमा में वागड़ के डूंगरपुर में यह परम्परा चली आ रही है मध्य रात्रि होते ही बुजुर्ग लोगों के साथ घर के सभी युवा-बच्चे आदि छत या खुले आंगन में चले जाते हैं। यहां छोटी सुई और पतला धागा लेते हैं और सुई में धागा पिरोया जाता है। कहा जाता है कि इस परम्परा से व्यक्ति की आंखों की रोशनी की स्थिति का आंकलन किया जाता है।

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