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जानिए महिलाओं में प्रेग्नेंसी के समय होने वाली इस समस्या के बारे में

locationजयपुरPublished: Jun 15, 2019 02:04:57 pm

गर्भावस्था में यह दिक्कत हो जाए तो महिला और गर्भस्थ शिशु दोनों की सेहत को नुकसान पहुंच सकता है।

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गर्भावस्था में यह दिक्कत हो जाए तो महिला और गर्भस्थ शिशु दोनों की सेहत को नुकसान पहुंच सकता है।

मिर्गी एक बड़ी समस्या है। यह बीमारी पुरुष और महिला दोनों को होती है। लेकिन यदि गर्भावस्था में यह दिक्कत हो जाए तो महिला और गर्भस्थ शिशु दोनों की सेहत को नुकसान पहुंच सकता है। महिलाओं को दो तरह से प्रभावित करती है मिर्गी की समस्या। पहली, वो महिलाएं जो गर्भधारण से पहले ही मिर्गी रोग से पीड़ित हैं। दूसरी वो जिनमें गर्भधारण के बाद इसके दौरे आते हैं। दोनों स्थितियों में सावधानी बरतकर और फॉलिक एसिड डाइट लेकर महिला स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती है। एनल्स ऑफ इंडियन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी के मुताबिक विश्व में करीब पांच करोड़ लोग मिर्गी से ग्रसित हैं। इनमें 50 % महिलाएं हैं। भारत में मिर्गी से पीड़ित महिलाओं की संख्या करीब 30 लाख है। सामान्य की तुलना में पीड़ित महिला के शिशु को तीन गुना ज्यादा खतरा रहता है।

दौरों का कारण : प्रेग्नेंसी में शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलाव, नींद में कमी, मानसिक तनाव व दवाओं से मेटाबॉलिज्म में बदलाव और रक्त में मिर्गी की दवाई की मात्रा का कम होना।

दुष्प्रभाव : गर्भपात, रक्तस्त्राव, नाल का समय पूर्व विच्छेदन, प्रसव पूर्व दौरे, समय से पहले डिलीवरी, प्रसव में जटिलता, मानसिक विकार और दौरे के कारण बेहोशी आदि।

शिशु को नुकसान : प्रीमेच्योर या मृत शिशु का होना, कम वजन, ऑक्सीजन की कमी से शिशु की हार्ट रेट कम होना, गर्भ में चोट लगने व शारीरिक विकृतियों की आशंका रहती है।

ये सावधानी बरतें –
गर्भधारण से पहले –
यदि कोई महिला पहले से मिर्गी से पीड़ित है तो गर्भधारण से पहले डॉक्टरी सलाह से दवाएं लें। हार्मोन में संतुलन व दौरे नियंत्रित रखने के लिए फॉलिक एसिड की एक गोली रेगुलर दी जाती है।

प्रसव के दौरान –
ऐसी महिलाओं की डिलीवरी अच्छे और उपकरणों से सुसज्जित अस्पतालों में ही करवानी चाहिए। ऐसा रोग की वजह से जटिल प्रसव की आशंका के चलते जरूरी है।

प्रसव के बाद –
डॉक्टरी सलाह पर मिर्गी की दवाएं नियमित लेनी चाहिए। इस दौरान बच्चे को स्तनपान कराती रहें क्योंकि मां के दूध से उसके शरीर में मिर्गी की दवाइयों की मात्रा बेहद कम हो जाती है।

ध्यान रखें : मिर्गी की जांच के लिए ब्लड टैस्ट के अलावा एक्स-रे, सीटी स्कैन और एमआरआई कराई जाती है। गर्भवती महिलाओं को एक्स-रे और सीटी स्कैन से रेडिएशन का खतरा रहता है। बहुत जरूरी हो तो ही पहले तीन माह में एमआरआई कराएं।

बचाव : दौरे आने पर मरीज को जूता या प्याज न सुंघाएं। यह छुआ-छूत अथवा दैवीयप्रकोप की बीमारी नहीं है, इसलिए झाड़-फूंक की जगह डॉक्टर से सही इलाज कराएं।

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