कैल्शियम फास्फेट बोन सीमेंट:
फायदे: यह स्कल बोन के साथ मिल जाता है व वृद्धि करने की क्षमता भी रखता है। इससे इंफ्लेमेट्री रिएक्शन नहीं होता है।
नुकसान: इसे शेप या आकार देने में मुश्किल होती है और यह कमजोर होता है।
फायदे: यह स्कल बोन के साथ मिल जाता है व वृद्धि करने की क्षमता भी रखता है। इससे इंफ्लेमेट्री रिएक्शन नहीं होता है।
नुकसान: इसे शेप या आकार देने में मुश्किल होती है और यह कमजोर होता है।
मिथाईल मिथएक्रीलेट:
यह एक्रीलिक एसिड का पोलीमराइज्ड इस्टर है, जो पाउडर के रूप में होता है। इसे पहले बेन्जोइल पर ऑक्साइड के साथ मिलाकर गुंथे हुए आटे जैसी स्थिति में लाया जाता है, जिस शेप का डिफेक्ट होता है ये वैसी शेप लेने में सक्षम होता है। यह 10-15 मिनट बाद हड्डी जैसा सख्त हो जाता है।
फायदे: सर्जन द्वारा प्रयोग करने में आसानी, बढिय़ा आकार, कम खर्च।
नुकसान: इन्फेक्शन व फे्रक्चर होने का खतरा अधिक रहता है। निर्जीव होने के कारण उम्र के साथ वृद्धि नहीं करता, इंफ्लेमेट्री रिएक्शन का खतरा रहता है।
यह एक्रीलिक एसिड का पोलीमराइज्ड इस्टर है, जो पाउडर के रूप में होता है। इसे पहले बेन्जोइल पर ऑक्साइड के साथ मिलाकर गुंथे हुए आटे जैसी स्थिति में लाया जाता है, जिस शेप का डिफेक्ट होता है ये वैसी शेप लेने में सक्षम होता है। यह 10-15 मिनट बाद हड्डी जैसा सख्त हो जाता है।
फायदे: सर्जन द्वारा प्रयोग करने में आसानी, बढिय़ा आकार, कम खर्च।
नुकसान: इन्फेक्शन व फे्रक्चर होने का खतरा अधिक रहता है। निर्जीव होने के कारण उम्र के साथ वृद्धि नहीं करता, इंफ्लेमेट्री रिएक्शन का खतरा रहता है।
टाइटेनियम मेश:
इससे बनी हुई जाली डिफेक्ट पर माइक्रो स्कू्र की मदद से लगा दी जाती है।
फायदा: रिएक्शन नहीं होता और इंफेक्शन कम होता है।
नुकसान: खर्चा अधिक होता है, आकार देने में मुश्किल होती है और यह समय के साथ ढीली हो जाती है।
इससे बनी हुई जाली डिफेक्ट पर माइक्रो स्कू्र की मदद से लगा दी जाती है।
फायदा: रिएक्शन नहीं होता और इंफेक्शन कम होता है।
नुकसान: खर्चा अधिक होता है, आकार देने में मुश्किल होती है और यह समय के साथ ढीली हो जाती है।
ऑटोलोगस बोन
इसमें मरीज के खुद की कपाल को मरीज के पेट (एबडोमिनल वॉल) में पहले ऑपरेशन के दौरान रख दिया जाता है। तीन से चार महीने के बाद यही हड्डी फिर से अपनी जगह पर स्थापित कर दी जाती है।
फायदा : खुद की कपाल सजीव रहती है और इसमें वृद्धि करने की क्षमता भी होती है।
नुकसान : पेट में पड़ी रहने से यह बोन अक्सर छोटी हो जाती है, इंफेक्शन का खतरा अधिक रहता है।
इसमें मरीज के खुद की कपाल को मरीज के पेट (एबडोमिनल वॉल) में पहले ऑपरेशन के दौरान रख दिया जाता है। तीन से चार महीने के बाद यही हड्डी फिर से अपनी जगह पर स्थापित कर दी जाती है।
फायदा : खुद की कपाल सजीव रहती है और इसमें वृद्धि करने की क्षमता भी होती है।
नुकसान : पेट में पड़ी रहने से यह बोन अक्सर छोटी हो जाती है, इंफेक्शन का खतरा अधिक रहता है।