क्या हाेता है ब्लैडर कैंसर ( What Is Bladder Cancer )
ब्लैडर में ट्यूमर बनने से ब्लैडर की यूरो थीलियम लेयर पर मांस चढ़ जाता है। इस कारण यूरिन में खून आने लगता है। कुछ गंभीर मामलों में यूरिन में खून का थक्का भी जमता है जिसे हिमेचूरिया कहते हैं। खून आने या खून का थक्का बनने से यह यूरिन व किडनी की नली में फैलने के साथ पेशाब की थैली के बाहर फैलने लगता है जिसे मेडिकली इनवेसिव ब्लैडर ट्यूमर कहते हैं। इस फैलते हुए ट्यूमर का जल्द इलाज न किया जाए तो शरीर के दूसरे अंगों पर भी बुरा असर पड़ने लगता है।
ब्लैडर में ट्यूमर बनने से ब्लैडर की यूरो थीलियम लेयर पर मांस चढ़ जाता है। इस कारण यूरिन में खून आने लगता है। कुछ गंभीर मामलों में यूरिन में खून का थक्का भी जमता है जिसे हिमेचूरिया कहते हैं। खून आने या खून का थक्का बनने से यह यूरिन व किडनी की नली में फैलने के साथ पेशाब की थैली के बाहर फैलने लगता है जिसे मेडिकली इनवेसिव ब्लैडर ट्यूमर कहते हैं। इस फैलते हुए ट्यूमर का जल्द इलाज न किया जाए तो शरीर के दूसरे अंगों पर भी बुरा असर पड़ने लगता है।
लक्षण ( Bladder Cancer Symptoms )
यूरिन में खून या खून का थक्का बनना, यूरिन में जलन की शिकायत, यूरिन करते वक्त बहुत अधिक दर्द होना, पीठ और पेल्विक में असहनीय दर्द होना। जांच ( Bladder Cancer Diagnosis )
यूरिन में खून आने की तकलीफ के बाद रोगी की सबसे पहले अल्ट्रासाउंड जांच करते हैं ताकि ब्लैडर का आकार पता चल सके। सीटी स्कैन कर ब्लैडर पर फैले ट्यूमर का आकार देख ट्रीटमेंट तय करते हैं।
यूरिन में खून या खून का थक्का बनना, यूरिन में जलन की शिकायत, यूरिन करते वक्त बहुत अधिक दर्द होना, पीठ और पेल्विक में असहनीय दर्द होना। जांच ( Bladder Cancer Diagnosis )
यूरिन में खून आने की तकलीफ के बाद रोगी की सबसे पहले अल्ट्रासाउंड जांच करते हैं ताकि ब्लैडर का आकार पता चल सके। सीटी स्कैन कर ब्लैडर पर फैले ट्यूमर का आकार देख ट्रीटमेंट तय करते हैं।
इलाज ( Bladder Cancer Treatment ) ट्रांसयूरेथ्रल रिसेक्शन ऑफ ब्लैडर (टीयूआरबीटी) तकनीक से सिस्टोस्कोप के जरिए ब्लैडर ट्यूमर को काटकर निकाल देते हैं। इसके बाद रोगी की कीमोथैरेपी व रेडियोथैरेपी करते हैं। कैंसर स्टेज जानने के लिए ट्यूमर की बायोप्सी भी करते हैं। जिन मरीजों में ट्यूमर ने ब्लैडर को बुरी तरह से जकड़ा हुआ होता है उस मामले में पेशाब की थैली को ओपन रेडिकल सिस्टेक्टमी तकनीक से बाहर निकाल देते हैं। इसके बाद आंतों की मदद से पेशाब की नई थैली बनाई जाती है जिससे रोगी आसानी से यूरिन पास कर सके।
लौट सकता रोग : ब्लैडर ट्यूमर को ऑपरेट कर निकाला जाए तो जरूरी नहीं कि यह पूरी तरह ठीक हो जाएगा। 25 फीसदी रोगी में यह दोबारा हो सकता है। बचाव के लिए रोगी के पेशाब की थैली में दवा (इम्युनोथैरेपी) डालते हैं।
केमिकल से खतरा : केमिकल फैक्ट्रियों में काम करने वालों को भी ब्लैडर कैंसर का खतरा रहता है। रबर, लेदर, डाई, पेंट और प्रिंटिंग से जुड़े लोगों में इसकी आशंका रहती है। क्योंकि सांस के जरिए केमिकल फेफड़े से होते हुए ब्लैडर की ऊपरी सतह तक पहुंचकर नुकसान पहुंचाते हैं।