डिंडोरी. एक तरफ पूरे देश में धूमधाम से गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है वहीं दूसरी तरफ आदिवासी बाहुल्य डिंडोरी जिले के वनग्राम तांतर में बैगा आदिवासी धरती-डोंगर नामक कार्यक्रम के जरिये पर्यावरण को बचाने का संदेश दे रहे हैं। बैगा आदिवासियों का जीवन पूर्णत: जंगल पर आश्रित होता है,जंगली कंदमूल,फल फूल एवं पेड़ पौधों की पत्तियां ही बैगा आदिवासियों का मुख्य भोजन होता है।
इसके अलावा बैगा कोदो, कुटकी, मक्का आदि अनाज बेवर खेती के जरिये बैगा आदिवासी करते हैं। बेवर खेती करने का वह तरीका होता है जिसमें बिना हल जोते और बिना खाद डाले फसल पैदा की जाती है। बेवर खेती की सबसे बड़ी खासियत यह होती है कि अतिवृष्टि या अल्पवर्षा जैसे स्थिति में भी फसल को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। लेकिन धीरे-धीरे बेवर खेती विलुप्त होती जा रही है जिसे बढ़ावा देने के लिये जानकार बैगाओं के साथ धरती-डोंगर संवाद नामक कार्यक्रम आयोजित कर बैगाओं को जागरूक करने का काम कर रहे हैं साथ जंगलों से मिलने वाले करीब 450 प्रकार के कंदमूल, फलफूल, पत्तियां, भाजी आदि की उपयोगिता भी समझाई जा रही है। हालांकि धरती डोंगर नामक इस कार्यक्रम की शुरूआत 24 जनवरी को तांतर गांव से की गई थी। जिसमें करीब दो दर्जन से अधिक वनग्रामों में निवासरत बैगा आदिवासी शामिल हुये और अब इस कार्यक्रम को अन्य बैगा आदिवासी बाहुल्य ग्रामों में आयोजित किया जा रहा है। स्वयंसेवी नरेश विश्वास बताते हैं कि कार्यक्रम का नाम धरती डोंगर इसलिये रखा गया है क्योंकि बैगा आदिवासी जमीन को धरती एवं जंगल को डोंगर कहते हैं और बैगा आदिवासी धरती और डोंगर को ही अपना भगवान मानकर उसकी पूजा करते हैं साथ ही इस कार्यक्रम का उद्देश्य बैगा आदिवासियों को बेवर खेती को बढ़ावा देने एवं जंगल से मिलने वाले भोजन की उपयोगिता बताना है। बैगा आदिवासियों का जीवन पूर्णत: जंगल पर आश्रित होता है,जंगली कंदमूल,फल फूल एवं पेड़ पौधों की पत्तियां ही बैगा आदिवासियों का मुख्य भोजन होता है।