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जिन्हें मुखाग्नि दे रहा था 3 साल का मासूम बेटा, उन्हीं के बारे में पूछ बैठा- मेरे पापा कब आएंगे

locationधौलपुरPublished: Feb 16, 2019 10:08:06 pm

Submitted by:

Kamlesh Sharma

भागीरथ… नाम सुनते ही मदनसिंह की आंखें भर आईं। बोले, भागीरथ सेना की रेस भी जीत गया, अब जिन्दगी की रेस में भी आगे निकल गया।

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धौलपुर। जैतपुर में प्रवेश करते ही राजस्थान पत्रिका टीम की मुलाकात भागीरथ के साथ दौड़ लगाने वाले उनके साथी मदनसिंह से हुई। भागीरथ… नाम सुनते ही मदनसिंह की आंखें भर आईं। बोले, भागीरथ सेना की रेस भी जीत गया, अब जिन्दगी की रेस में भी आगे निकल गया।
हम उसका पीछा भी नहीं कर पाए। मगर जज्बा आज भी वही है। भागीरथ की प्रेरणा से ही गांव के लगभग 50 युवा सेना में जाने के लिए रोजाना दौड़ लगा रहे हैं। पत्रिका टीम यहां से आगे बढ़ी तो गांव को जोडऩे वाले हर रास्ते-पगडण्डी पर ग्रामीणों के रेले जैतपुर की ओर से जा रहे थे। सबकी आंखों में आंसू, पाकिस्तान और आतंकवाद के प्रति गुस्सा।
टीम शहीद के घर पहुंची तो बड़ी संख्या में ग्रामीण गमगीन बैठे थे। भीतर महिलाओं का करुण क्रन्दन वहां मौजूद ग्रामीणों की आंखों से आंसू सूखने नहीं दे रहा था। परिवार की महिलाओं के बीच शहीद भागीरथ की वीरांगना रंजना रह-रहकर बेसुध हो रही थीं। उन्हें शान्त कराना महिलाओं के वश से बाहर था।
होश में लाने के लिए महिलाओं ने पानी के छींटे डाले। आखिर चिकित्सक को बुलाया, जिसने ब्लड प्रेशर जांचा और जैसे-तैसे होश में लाया गया। करीब 10.30 बजे जैसे ही शहीद की पार्थिव देह घर की देहरी पर पहुंची, पिता परशुराम, भाई बलवीर ताबूत के पास सिर पटक-पटक कर बिलखने लगे। रंजना को बड़ी मुश्किल से देह के पास लाया गया। उसे संभालना लोगों के लिए मुश्किल हो गया। हाथों की चूडिय़ां तोडऩे की रस्म के बाद वापस ले जाने लगे तो रंजना ने ताबूत पर ढका तिरंगा पकड़ लिया और पति के अंतिम दर्शन के लिए बिलखने लगीं लेकिन ताबूत नहीं खोला गया।
पार्थिव देह 200 मीटर दूर खेत में अंत्येष्टि स्थल पर ले जाई गई तो रास्ते में भागीरथ अमर रहे, हिन्दुस्तान जिंदाबाद, पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारों से गांव गंूज उठा। शहीद की देह जैसे ही चितावेदी पर पहुंचाई गई, अंतिम विदाई और सम्मान में ग्रामीणों का हूजूम खड़ा हो गया। इस दौरान भागीरथ अमर रहे के नारे से वातावरण गूंज उठा। गर्व से तनकर खड़े युवाओं की आंखों तक में पानी था।
जैसे ही 3 वर्ष के मासूम बेटे विनय ने मुखाग्नि दी, पूरा गांव रो पड़ा। विनय ने चरणों की तरफ मिट्टी को सिर पर लगाकर पिता को अंतिम विदाई दी। शहीद के पुत्र 3 वर्षीय विनय को इल्म ही नहीं, उसके पिता अब कभी लौटकर नहीं आएंगे। खुद मुखाग्नि दी लेकिन आंखें फिर भी जन सैलाब के बीच मानो पिता को ही तलाश रही थीं। मुखाग्नि देते आखिर वह पूछ ही बैठा ‘मेरे पापा कब आएंगे’।
वीरांगना बोलीं, दया नहीं बदला चाहिए

अंतिम संस्कार के बाद सीआरपीएफ के कमाण्डेंट बीके वैष्णव वीरांगना और परिजनों को राष्ट्रीय ध्वज व प्राथमिक सहायता राशि भेंट करने पहुंचे। पति की शहादत की सूचना के बाद से खामोश हुईं वीरांगना का कलेजा फट आया। सीआरपीएफ के अधिकारियों से बोलीं, मुझे और मेरे परिवार को दया नहीं, बदला चाहिए। इस दौरान वहां मौजूद हर शख्स गुस्से से भर उठा। वैष्णव ने जवाब दिया, देश के दुश्मनों को छोड़ेंगे नहीं, ढूंढ-ढूंढ कर मारेंगे।

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