ऐसी मान्यता है कि भगवान धारनाथ की आज्ञा के बिना यहां कुछ नहीं होता है। धार में जब भी कोई नया कलेक्टर या एसपी धार में ट्रांसफर होकर आता है तो अपनी ज्वाइनिंग से पहले धारेश्वर भगवान के मंदिर में मत्था टेककर ही अपना कार्यभार संभालता है। धार से जाने वाले अधिकारी भी भगवान धारनाथ को नमन करने के बाद ही यहां से रवाना होते है। माना जाता है कि ये धार के राजा है और प्रजा का हाल जानने के लिए वर्ष में एक बार नगर भ्रमण पर निकलते है। यह परंपरा राजा भोज के समय से चली आ रही है। प्राचीनकाल में राजा खुद इस पालकी यात्रा में पैदल चलते थे।
सावन शुरू होते ही लगती है भक्तों की भीड़ धार का यह अतिप्राचीन धारेश्वर मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है। यहां सावन का महीना शुरु होते ही दूर-दूराज से भगवान शिवशंकर के भक्त बम-बम भोले, हर-हर महादेव के जयकारों के साथ दर्शन के लिए पहुंचते हैं। इसके अलावा प्रतिदिन भी कई भक्तगण यहां पर बाबा धारनाथ का अभिषेक करने के लिए आते हंै। धारेश्वर का मतलब होता है धार के ईश्वर जिनके दर्शन पूजन करने से पाप क्षण हो जाते हैंऔर पुण्य का उदय होता है। साहित्यकारों के अनुसार धारेश्वर, महाकाल की भांति ही धार निवासियों के लिए श्रद्धा और आस्था का केंद्र है। परमारकालीन राजा भोज के आराध्य देव रहे हंै। मंदिर का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व हजारों वर्षों से है।