मौन रहकर करते थे अभिव्यक्त भावों को, जुबां से नहीं पेंटिंग्स से सुनाते थे दास्तान
देवासPublished: Jul 16, 2019 11:01:50 am
–ख्यात चित्रकार अफजल, गीतकार नईम और कथक गुरु प्रफुल्ल गेहलोत ने बढ़ाया शहर का मान
देवास. धर्म-अध्यात्म और संगीत के अलावा देवास में ऐसे कला गुरु हुए हैं जो अपनी कला से शिष्यों को निखार रहे हैं। चित्रकला के क्षेत्र में ख्यात चित्रकार अफजल हुए हैं जिनके चित्र बोलते थे। गीतों की दुनिया में नईम हुए जिनके अल्फाज जिंदगी की हकीकत से रूबरू करवाते हैं। कथक नृत्य के क्षेत्र में प्रफुल्ल गेहलोत हैं जो थिरकते पैरों से भावों को अभिव्यक्त करते हैं।
असल में अफजल एक ऐसे कलाकार थे जो मौन रहकर अभिव्यक्त करते थे भावों को। कहते थे कथाएं, ओठों से नहीं चित्रों से। सुनाते थे दास्तान जुबां से नहीं पेंटिग्स से। देवास में रहकर भी जिनका नाम पूरे देश में अदब से लिया जाता था। जिनकी कलाकृतियां ही उनकी पहचान थी और फक्कड़ मिजाज उनकी खासियत। 1 अगस्त 1936 को देवास में जन्मे अफजल चित्रों की भाषा में बात करते थे। उनके भाई और उन्हीं की परंपरा को आगे बढ़ा रहे चित्रकार रईस खान ने बताया कि ने खैरागढ़ यूनिर्वसिटी से फाइन एंड अप्लाइड आट्र्स में नेशनल डिप्लोमा करने के बाद विक्रम विवि उज्जैन से चित्रकला में स्नातकोत्तर उपाधि अर्जित की। इसके बाद समूचा जीवन चित्रों में जिया। चित्र ही उनकी रुह थे और यही उनकी साधना भी। यह उनकी शख्सियत थी कि ललित कला संग्रह भारत भवन भोपाल ने उनके चित्रों की प्रदर्शनी लगाई। प्रणति नामक पुस्तक प्रकाशित की जो उन्हीं को समर्पित थी और जिनमें उनकी कलाकृतियों का समावेश था। अब यह विरासत उनके भाई रईस खान संभाल रहे है। वे बताते हैं कि अफजल र्पोटे्रट से लेकर मॉडर्न आट्र्स में उनका कोई सानी नहीं था। लैंडस्केप प्रकृति की विविधवर्मी छवियां मनाव आवास का आत्मीय चित्रण सुंदरता से करते थे। रंगों का ऐसा समावेश कि हर कोई हैरान हो जाता था। वे चित्रों की भाषा में निपुण थे और बिना कुछ कहे उनके चित्र ही सबकुछ कह जाते थे। आज उनके कई शिष्य हैं जो चित्रों की दुनिया में अपना नाम कमा रहे हैं और अपने गुरु के प्रति श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।
कथक को बढ़ा रहे आगे
संगीत जगत में जिस तरह गायकी के क्षेत्र में देवास में सांगीतिक मनीषियों ने साधना की उसी तरह शास्त्रीय नृत्य की विधा में भी देवास आगे बढ़ रहा है। कथक नृत्य को गुरु परंपरा से आगे बढ़ा रहे हैं कथक नर्तक प्रफुल्ल गेहलोत। रायगढ़ घराने के पं. रामलाल व बिरजू महाराज के गंडाबंध शिष्य पद्मश्री प्रतापराव पवार से कथक की तालीम हासिल करने वाले प्रफुल्ल गेहलोत देवास में घुंघरू नृत्य अकादमी के नाम से कथक सिखा रहे हैं। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से यह मुकाम हासिल किया है और देश में अपनी पहचान बनाई है। उनके कई शिष्य देश भर में सम्मान पा चुके हैं और इस सम्मान से गुरु को गौरवान्वित किया है। गुरु पूॢणमा पर १६ जुलाई को एकेडमी में आयोजन होगा और गुरु पूजन किया जाएगा।
लिख सकूं तो प्यार लिखना चाहता हूं
गीतों की दुनिया की बात करें तो नईम को कौन भूल सकता है। उनके लिखे गीतों में हमारे समाज की अभिलाषाएं और विसंगतियां दिखाई देती हैं। वे सोचने पर मजबूर करते हैं। छंदों का कठोर अनुशासन गीतों में भले न मिले लेकिन लय की अनदेखी नहीं की जा सकती। जीवन से जुड़े होते थे नईम के गीत। उन्हीं के शब्दों में लिखें तो- लिख सकूं तो प्यार लिखना चाहता हूं, ठीक आदमजात सा बेखौफ दिखना चाहता हूं…। प्यार के हाथों, घटी दर बाजारों आज बिकना चाहता हूं। इसी तरह शहर में साहित्य, कला, संगीत के क्षेत्र में अनेक ऐसी शख्सियतें ंहुई हैं जिनके दम पर आज देवास दंभ भरता है और शहर का नाम सम्मान से लिया जाता है।