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देवास

उद्योगों के जहरीले पानी से शिप्रा का आंचल मैला, 10 किमी के दायरे में बंजर हुई जमीन

औद्योगिक क्षेत्र स्थित कई कंपनियों द्वारा केमिकल वाला दूषित जल सीधे नालों में बहाया जा रहा है
 

देवासMar 11, 2024 / 06:50 pm

rishi jaiswal

उद्योगों के जहरीले पानी से शिप्रा का आंचल मैला, 10 किमी के दायरे में बंजर हुई जमीन

उद्योगों के जहरीले पानी से शिप्रा का आंचल मैला, 10 किमी के दायरे में बंजर हुई जमीन

देवास. ये हरियाली की चादर ओढ़े हुए कोई पहाड़ी नहीं हैं। जिम्मेदारों की अनदेखी से मां शिप्रा केमिकल युक्त दूषित जल से ढक गई हैं। दूसरों को जीवन देने वाली मां शिप्रा की सांसें केमिकल युक्त पानी की चादर के नीचे घुट रही हैं। अब औद्योगिक क्षेत्र की कंपनियों के दूषित जल से उसकी सांस भी उखडऩे लगी है। कंपनियों का दूषित जल नालों से होकर शिप्रा में मिल रहा है। दूषित जल मिलने से कहीं कहीं तो गर्मी में नाले बारिश की तरह बह रहे हैं। कहीं थमे भी हैं,लेकिन रात में कंपनी से पानी छोडऩे पर नाले तेजी से बहने लगते हैं। शासन-प्रशासन सालों से शिप्रा को शुद्ध करने की योजना बनाता है, लेकिन जमीन पर कुछ नहीं हो पाता है। अब मैली हो रही हमारी शिप्रा को भगीरथ की आस है।
शहर के आसपास के करीब चार से पांच मुख्य नाले शिप्रा में मिलते हैं। शंकरगढ़ के पास से निकलने वाले मुख्य नाला अमोना, बिंजाना, राजीव नगर, गदईशापिपलिया, पुवार्डा हप्पा जैसे करीब आधा दर्जन से ज्यादा गांवों से गुजरता है। इसके किनारे पर कई कंपनियां हैं जो पाइपों के माध्यम से नाले में पानी को छोड़ती हैं। वहीं, औद्योगिक क्षेत्र स्थित कंपनियों द्वारा यहां की नागधम्मन नदी में केमिकलयुक्त प्रदूषित पानी बहाया जाता है। जो शिप्रा में आकर मिलता है।
ये भी बड़ा असर, जमीन पूरी तरह से खराब

देवास के औद्योगिक क्षेत्र स्थित कई कंपनियों द्वारा केमिकल वाला दूषित जल सीधे नालों में बहाया जा रहा है। लंबे समय से प्रदूषित जल बहने से यहां करीब 10 किमी के दायरे में जमीन पूरी तरह से खराब हो गई है। साथ ही दूषित जल आगे जाकर शिप्रा नदी में मिल रहा है। कंपनियों द्वारा बहाए जा रहे दूषित जल का प्रतिदिन निरीक्षण करने के लिए कलेक्टर ने कुछ दिन पहले दल गठित किया था, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई एवं निरीक्षण नजर नहीं आया।
सांस लेना मुश्किल…कहां जाएंगे यहां से

भेरूलाल डिंडोरे ने बताया कि यहां सालों से रहते हैं। यहां कभी कभी तो सांस लेना मुश्किल हो जाता है। अपना घर छोडक़र कहीं नहीं जा सकते हैं। बच्चों के साथ यहीं रहते हैं। जीना यहां, मरना यहां है। केमिकल की गंध तो अब हमारे सांस में घुली सी लगती है। खुली और साफ हवा में सांस लेना तो सपना जैसा है। हमारा घर तो नाले के पास ही है। क्या करें।
रिश्तेदार यहां आने से पहले सोचते हैं, कैसे सांस लेंगे

बिंजाना क्षेत्र की महिला अनीताबाई ने बताया कि रात में नालों में पानी बढ़ जाता है। दिनभर तो यहां सांस लेना मुश्किल हो जाता हैं। हालात ये है कि हमारे यहां तो रिश्तेदार आने पहले सोचते हैं कि कैसे यहां रहेंगे। दिनभर गंध से लोग परेशान रहते हैं। सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। यह गंध तो हमारी सांस में बस गई है।
फैक्ट फाइल….

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एक्सपर्ट व्यू…

ललित चौहान, सामाजिक कार्यकर्ता

मैं साल 2011 से सीईटीपी (सामान्य प्रवाह उपचार संयंत्र) की मांग कर रहा हूं, लेकिन संयंत्र के लिए अभी तक जमीन उपलब्ध नहीं हुई। शिप्रा को शुद्ध करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण सीईटीपी यानी औद्योगिक इकाई से निकलने वाले दूषित जल के उपचार के लिए संयंत्र की स्थापना होना चाहिए। जितनी भी कंपनियां ईटीपी चला रही हैं उनकी कैमरे के माध्यम से ऑनलाइन मॉनीटरिंग होना चाहिए। जिससे भूमिगत जल संपदा दूषित ना। वहीं मप्र नियंत्रण बोर्ड की नियमानुसार निगरानी होना चाहिए। रात में भी पानी छोड़ा जा रहा है। इसलिए रात में भी निरीक्षण करना चाहिए।
निरीक्षण के लिए हमने दल गठित किए हैं, जो अलग-अलग दिन जाकर मौके पर निरीक्षण कर कार्रवाई करेंगे।

ऋषव गुप्ता, कलेक्टर देवास

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