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गुरु पूॢणमा विशेष- शास्त्रीय संगीत के कबीर थे कुमार साहब

locationदेवासPublished: Jul 16, 2019 10:53:04 am

Submitted by:

mayur vyas

कर्नाटक में जन्मे, देवास आए और यहीं बस गए

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देवास. संगीत के क्षेत्र में देवास का नाम यदि सम्मान से लिया जाता है तो उसकी सबसे प्रमुख वजह पं. कुमार गंधर्व का यहां होना है। मूलत: कर्नाटक में जन्मे कुमार साहब १९४८ में देवास आए थे। यहां का वातावरण उन्हें इतना भाया कि वे यहीं बस गए और माता टेकरी के नीचे अपना निवास बनाया। जब यहां आए थे तब एबी रोड पर रहते थे बाद में माता टेकरी मार्ग पर रहने लगे। कुमार साहब की गायकी इतनी विलक्षण थी कि जो सुनता वह सुनता ही चला जाता। बीच में एक दौर ऐसा आया जब कुमार जी अस्वस्थ हुए लेकिन यहां के सुरम्य वातावरण से उनकी बीमारी दूर हुई और उसके बाद वे सिर्फ गायकी के लिए ही जिए और जीने के लिए गाते रहे। उन्हें शास्त्रीय संगीत का कबीर कहा गया।
दरअसल कुमार साहब का मूल नाम शिवपुत्र सिद्धरमैया कोमकली था। १९२४ में कर्नाटक में उनका जन्म हुआ और करीब १९४८ में वे देवास आए। भानुमति से विवाह किया। उनके निधन के बाद वसुंधरा कोमकली से विवाह किया। वसुंधरा कोमकली ने एक शिष्या का फर्ज जितनी शिद्दत से निभाया था उतनी ही कर्तव्यपरायणता से कुमारजी की पत्नी का फर्ज निभाया। गायकी के पुरोधा मुकुल शिवपुत्र का नाम कौन नहीं जानता। मुकुल जी का बचपन भी यहीं बीता। मुकुल जी की गायकी का जादू जब भी बिखरता तब-तब श्रोता खो जाते। सुविख्यात गायिका कलापिनी कोमकली ने अपने पिता कुमार साहब की परंपरा को आगे बढ़ाया और आज भी यह परंपरा जारी है। गायकी के क्षेत्र में कलापिनी कोमकली ने अपना अलग मुकाम बनाया है और कुमारजी-वसुंधरा कोमकली के सान्निध्य में जो सीखा उसे सिखाने के साथ ही अपनी गायकी से दर्शा रही हैं। मुकुलजी के पुत्र भुवनेश कोमकली भी अपनी गायकी से इस पंरपरा के विस्तार में योगदान दे रहे हैं और यह देवास के लिए गौरव की बात है कि शास्त्रीय संगीत के ऐसे गुरु की कर्मभूमि रही जिसने इस क्षेत्र के अनेक सुर साधकों को संगीत का ज्ञान दिया। उन्हें परखा और तराशा। गुरु पूर्णिमा पर कुमारजी और वसुंधरा कोमकली के शिष्य उन्हें नमन करते हैं। कुमारजी के शिष्यों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। मुकुल शिवपुत्र, वसुंधरा कोमकली, कलापिनी कोमकली, सत्यशील देशपांडे, मधुप मुद्गल, मीरा राव, चिंतामणि किरकिरे, पंढरीनाथ कोल्हापुरे, विजय सरदेशमुख आदि।
ज्ञान की जडिय़ां दी म्हारे सद्गुरु…
कुमार जी की पुत्री सुविख्यात शास्त्रीय गायिका कलापिनी कोमकली कहती हैं कि गुरु ही प्रणाम मन ही मन कीन्हा, अति लाघव उठाहि धनु लीन्हा…। तुलसीदास जी की ये पंक्तियां उस समय की है जब श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष उठाया था। शिव धनुष उठाना इतनी बड़ी जिम्मेदारी थी कि मन में पहले गुरु को प्रणाम किया ताकि शिव धनुष को सम्हाल सके। हम भी कुमारजी की गायकी का शिव धनुष यदि उठाकर सम्हाल पा रहे हैं तो यह उन्हीं का आशीर्वाद है। वसंधुरा कोमकली के बारे में कलापिनी कहती हैं कि ज्ञान की जडिय़ां दी म्हारे सद्गुरु…। यह भजन वसुंधरा जी के लिए हैं जिन्होंने ज्ञान की जडिय़ां दी और जिसके बूते आज उनकी विरासत संभालकर आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हंै। गुरु पूर्णिमा पर दोनों को नमन…।
गुरु जो कहे वो करो, गुरु जो करे वो मत करो
ख्यात शास्त्रीय गायक भुवनेश कोमकली ने कहा कि मैं समस्त गुरुओं को शत शत नमन करता हूं। आज जो कुछ भी हूं गुरु की बदौलत हूं। गुरु के प्रति सदैव आस्थावान-निष्ठावान रहें। मैं ऐसी विद्या से संबद्ध हूं जो पूर्णरूपेण गुरु मुखी है। शीलनाथ जी महाराज के ये शब्द सदैव याद रखने योग्य हैं कि गुरु जैसा कहे वैसा करो, गुरु जैसा करे वैसा मत करो। गुरु चाहे किसी भी क्षेत्र में हो वे हमारा मार्गदर्शन करते हैं। संकटों से बचाते हैं। सामथ्र्यवान बनाते हैं।
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