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भगवान शिव अपने भक्तों को मायाजाल के भवसागर से पार लगाते

locationदेवासPublished: Aug 14, 2018 02:57:29 pm

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amit mandloi

ऊँ शिवं नत्वा शिवां चापि शिवसुनुं पुन: पुन:। शिवं कुर्वन्तु सर्वेपि सर्वदा सदनुग्रहा:।

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सोनकच्छ. राजेश शर्मा ऊँ शिवं नत्वा शिवां चापि शिवसुनुं पुन: पुन:। शिवं कुर्वन्तु सर्वेपि सर्वदा सदनुग्रहा:। यतो जातानि भूतानि जीवन्ति यदनुग्रहात्। यस्मिनैव लयं यान्ति तस्मै चिद्ब्रह्मणे नम: ।। यह प्रार्थनात्मक श्लोक कालीसिन्ध नदी के पश्चिमी तट पर स्थित सावन माह के तीसरे सोमवार को विश्व के चौथे और भारत के तीसरे मां धूमावती शक्तिपीठ कोटेश्वर धाम कोटड़ा सोनकच्छ के स्वामी नित्यमुक्तानन्द तीर्थ महाराज ने श्रद्धालुओं को सुनाया।
उन्होंने उपरोक्त श्लोक का हिन्दी में अर्थ बताते हुए कहा कि उपरोक्त प्रार्थनात्मक श्लोक में आया है..शिवं नत्वा अर्थात..शिव को प्रणाम है, शिवां चापि अर्थात शिवा को भी प्रणाम है, शिवा का अर्थ है मां जगदम्बा जो कि शिव की सर्वकल्याणमयी शक्ति पत्नी हैं। आगे के पद में कहा है..शिवसुनुं पुन: पुन:। अर्थात शिवपुत्र मंगलमय श्रीगणेश देव को बार.बार प्रणाम है। आगे के पद में कहा है..शिवं कुर्वन्तु सर्वेपि सर्वदा सदनुग्रहा:।। अर्थात..शिव ही एकमात्र सभी के ऊपर सच्चा अनुग्रह करते हैं। वे अपने अनन्य उपासक भक्तों को अर्थ,धर्म, काम तथा मोक्ष इन सबसे संबंधित जो भी इच्छित वस्तुएं हों, उन्हें अनुग्रह पूर्वक प्रदान करते हैं, वे कृतार्थ करते हैं वे यह ही नहीं परम तृप्ति सहज रूप में प्रदान करते हैं तथा माया के अथाह भवसागर में डूबते हुए अपने अनन्य भक्तों को बाह पकड़ कर पार करते हैं और उसका उद्धार करते हैं।
यतो जातानि भूतानि, अर्थात जिनसे यह गोचर .अगोचर जीव जगत् तथा जगत् के सम्पूर्ण पदार्थ उत्पन्न हुए हैं, परन्तु इस पद में विशेष रूप से सम्पूर्ण जीवों को ही ग्रहण किया है। जिनकी केवल इच्छामात्र से सम्पूर्ण प्राणि उत्पन्न हुए हैं। जीवन्ती यदनुग्रहात अर्थात् ..जिनकी कृपा से सम्पूर्ण प्राणि जीवित रहते हुए अपनी . अपनी योनि के अनुरूप दिनचर्या तथा व्यवहार करते हैं। इस प्रक्रिया में मात्र सृष्टि चलती है परन्तु जीवों का वास्तविक कल्याण, सदैव के लिए इस जन्म.मृत्यु रूपी संसार से मुक्ति संभव नहीं है।
अब हम अगले पद पर विचार करें तो अच्छा है, अगला पद है..यस्मिन्नैव लयं यान्ति, जिनकी महति अनुग्रह के बिना जीव लय को प्राप्त नहीं कर सकते, जिनसे इनका सृजन हुआ है, जो इन्हें पालन करते हैं, जब उन्हीं की विशेष अनुकम्पा होती है, तब जीवों का जीव जनित खेल सदैव. सदैव के लिए परिसमाप्त हो जाता है। वह आवागमन स्वरूप जन्म.मृत्यु के भवचक्र से मुक्त हो जाता है तथा जिनसे उतपन्न हुआ, उन्हीं में अनुप्रवेश कर जाता है।
इसे ही शास्त्रों में जीवों की आत्यान्तिक निवृत्ति तथा मोक्ष कहा है। अगला पद है.तस्मै चिद् ब्रह्मणे नम:।। इसका अर्थ है..उस चिद् ब्रह्म को प्रणाम है, वे चैतन्य ब्रह्म हैं। परम शिव, जिनमें शिव, शक्ति तथा गणपति सभी एकाकार हो जाते हैं। इत्यलम् शिवम। स्वामीजी के आशीर्वचन सुनने से पूर्व यहां आए सैकड़ों महिला.पुरुष श्रद्धालुओं ने कोटेश्वर महादेव तथा मां धूमावती के दर्शन कर मत्था टेक पुण्य कमाया।
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