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फर्जी दस्तावेजों की शिकायत पर हुई जांच, अब तक 714 आवेदन हुए निरस्त, करोड़ों रु. का नुकसान होने से बचा

प्रधानमंत्री आवास योजना में फर्जीवाड़ा, नगर निगम से योजना का लाभ लेने के लिए कई तरह के फर्जी दस्तावेज किए थे तैयार

देवासSep 18, 2022 / 05:38 pm

Chandraprakash Sharma

फर्जी दस्तावेजों की शिकायत पर हुई जांच, अब तक 714 आवेदन हुए निरस्त, करोड़ों रु. का नुकसान होने से बचा

फर्जी दस्तावेजों की शिकायत पर हुई जांच, अब तक 714 आवेदन हुए निरस्त, करोड़ों रु. का नुकसान होने से बचा

देवास. नगर निगम से प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ लेने के लिए कई तरह का फर्जीवाड़ा किया जा रहा है। फर्जी दस्तावेज लगाकर लोग योजना के तहत 2.50 लाख रुपए की राशि लेना चाह रहे हैं। ऐसे में जब मामले की शिकायत निगमायुक्त के पास पहुंची तो मामले की जांच की गई। जांच के बाद अब तक करीब 714 आवेदनों को निरस्त कर दिया गया है। इन वार्डों में ज्यादातर आवेदन शहर के चार वार्डों के हैं जो शहर के बाहरी हिस्से में है।
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत विभिन्न दस्तावेजों के साथ आवेदन करना होता है। ऐसे में अपात्र लोग फर्जी दस्तावेज लगाकर आवेदन कर रहे थे। इसमें फर्जी दाखिला, संपत्तिकर बिल आदि लगाए जा रहे थे। कुछ माह पूर्व मामले की शिकायत निगमायुक्त विशालङ्क्षसह चौहान तक पहुंची तो उन्होंने स्टाफ को जांच के निर्देश दिए। जब जांच की गई तो मामला पकड़ में आया। स्टाफ ने बारीकी से जांच कर सत्यापन कराया तो कई आवेदनों में दस्तावेज फर्जी निकले। कुछ तो ऐसे थे जिनमें सील लगाने के बाद ऊपर साइन करना थे लेकिन सील के बीच साइन कर दस्तावेज तैयार किए गए।
हो जाता 18 करोड़ का नुकसान
प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत हितग्राही को 2.50 लाख रुपए की राशि अलग-अगल किश्तों में मकान बनाने के लिए दी जाती है। अगर समय रहते फर्जी दस्तावेजों की जांच न होती तो करीब 18 करोड़ रुपए का चूना लग जाता।
सबसे ज्यादा मामले 4 वार्ड के
जिन आवेदनों में गड़बड़ी मिली है उनमें सबसे ज्यादा शहर के चार वार्डों के हैं। इनमें वार्ड 14, 15, 16, 17 शामिल हैं। इन्हीं वार्डों से फर्जी दस्तावेज लगाकर सबसे ज्यादा आवेदन हुए थे। फर्जी दस्तावेज के मामले सामने आने के बाद अब निगम ने इस मामले में सख्ती कर दी।
714 आवेदन निरस्त
ऐ से में एक के बाद एक आवेदन की जांच हुई तो अब तक करीब 714 आवेदन निरस्त कर दिए गए हैं। सूत्रों की माने तो पूर्व में संबधित विभाग के जिम्मेदारों ने दस्तावेजों की बारीकी से जांच नहीं की। अगर जांच की जाती तो पहले भी ऐसे मामले सामने आ सकते थे।

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