जालोर. जवाई बांध के निर्माण से लेकर अब इसके पानी पर हिस्सेदारी और हक को लेकर जालोर जिले से लगातार सौतेला व्यवहार हो रहा है। न तो इसके पानी पर जालोर का हक तय है और न ही अब तक के इतिहास में कोई फायदा भी पहुंचा है। बांध निर्माण के इतिहास की बात करें तो इसके निर्माण से पूर्व ही इंजीनियर्स ने विभिन्न स्तर पर आकलन कर अंगे्रज प्रशासक एडगर व फर्गुसन को बता दिया था कि बांध की अधिकतम एक सीजन में आवक ३ हजार एमसीएफटी ही है। ऐसे में बांध का निर्माण इसी क्षमता या इससे थोड़ा अधिक बनाया जा सकता है। बांध के निर्माण की बात करें तो जवाई बांध निर्माण के लिए विभिन्न स्तर पर प्रयास 1844 से ही शुरू हो गए थे। लेकिन विभिन्न कारणों से इस पर काम शुरू नहीं हो पाया। जिसके बाद पूर्व नरेश उम्मेदसिंह ने इसका काम शुरु करवाया, जो एक दशक के निर्माण के बाद १९५७ में पूरा हुआ। लेकिन बाद में निजी स्वार्थों के चलते बांध को इस क्षमता से दोगुना से भी अधिक ऊंचाई और भराव क्षमता का बना दिया गया। अत्यधिक बारिश होने पर ही यह बांध यदि पूरी तरह से खाली हो तो इसमें अच्छी आवक हो सकती है। पिछले दो सालों की बात करें तो बांध लगभग आधा भरा हुआ होने के बाद अच्छी बारिश पर ही इससे पानी छोड़ा गया है।
चेताया था सूख जाएंगे कृषि कुएं
निर्माण से पूर्व ही बांध के निर्माण के बाद इस बहाव में होने वाले दुष्प्रभावों को लेकर इंजीनियर्स ने आगाह किया था। यह कहा गया था कि यदि बहाव पर बांध का निर्माण होता है और बहाव बंद हो जाता है तो जालोर और जालोर जिले के नदी के छोर पर स्थित कृषि कुएं बंजर हो जाएंगे।
यह रहा इतिहास
जवाई बांध के निर्माण के लिए अंगे्रजों ने विभिन्न सर्वे किए, लेकिन इसे धरातल पर साकार रूप देने के लिए शिलान्यास
जोधपुर पूर्व नरेश उम्मेदसिंह के समय में 12 मई १९४६ में किया गया। करीब १० साल में १९५७ में इसका निर्माण कार्य पूरा हुआ।
1973 तक भरा ही नहीं बांध
बांध निर्माण से पूर्व कोटड़ा में होने वाली बारिश के अनुमान को आधार मानकर इसकी रूपरेखा तय की गई थी। कोटड़ा में बारिश का बेस ३२ इंच थी, लेकिन इंजीनियर्स ने विभिन्न स्तर पर सर्वे के बाद यह आकलन किया कि यह बाली का क्षेत्र है और यह क्षेत्र २६ इंच बारिश का ही क्षेत्र है। ऐसे में बांध का निर्माण ३ हजार एमसीएफटी क्षमता का बनाने का सुझाव था, लेकिन बाद में यह तय हुआ कि भविष्य में अधिक बारिश् होने पर और अन्य राज्यों से पानी की आवक होने पर बांध में पानी का अधिक स्टॉक हो सकता है, ऐसे में बांध का निर्माण पहले स्तर पर ही आवक से दोगुनी क्षमता से अधिक ६० फीट तक बना दिया गया। जिसके बाद पहली बार १९७३ में इस बांध में भराव तक पानी की आवक हुई और 2 लाख क्यूसेक पानी एक साथ छोड़ा गया। जिससे जालोर में बाढ़ के हालात बने। यही स्थिति बनी रही और बांध से काफी समय तक पानी का बहाव जारी रहा। आखिरकार 19७३ में पानी का भराव होने के बाद इसकी क्षमता ६० फीट से बढ़ाकर ६१.२५ कर दी गई।
एक्सपर्ट व्यू
जवाई जालोर के लिए जीवनदायिनी मानी जाती है। लेकिन इसमें बहाव के लिए बांध के भराव का इंतजार अधिक करना पड़ता है। सीधे तौर पर कहा जाए तो यदि बांध का भराव नहीं होता तो जवाई नदी में बहाव अधिक समय तक नहीं हो सकता और कृषि कुओं की बात करें तो जब तक अधिक बहाव नहीं होगा तब तक ये रिचार्ज भी नहीं हो सकेंगे। ऐसे में जरुरी है कि नदी में हर एक दो साल में बहाव जारी रहे।
– लक्ष्मण सुंदेशा, सेवानिवृत्त एक्सईएन