इस वजह से होम्यिोपैथी की तरफ हो रहा झुकाव
दरअसल उत्तराखंड में सरकारी होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज का नहीं होना काफी दुर्भाग्यपूर्ण है। होम्योपैथिक का इलाज काफी सस्ता पड़ता है। यही वजह की आम आदमी सबसे पहले होम्योपैथिक इलाज की तलाश करता है। हालांकि सरकारी स्तर पर कोई होम्योपैथिक कॉलेज नहीं होते हुए भी सरकारी उपचार केंद्रों पर होम्योपैथिक चिकित्सककों की तैनाती उत्तराखंड सरकार द्वारा जरूर की गई है। होम्योपैथिक चिकित्सकों के यहां भीड़ भी काफी उमड़ती है। बावजूद अब तक सरकारी होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज की स्थापना को लेकर किसी भी तरह का कोई प्रयास नहीं हुआ है। लेकिन 25 अक्टूबर 2018 को विधि आयोग ने अपनी बैठक में माना कि उत्तराखंड में सरकारी होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज की स्थापना तत्काल प्रभाव से किए जाने की आवश्यकता है। इस क्रम में विधि आयोग ने उत्तराखंड सरकार को अपनी रिपोर्ट भी भेजी है। जिसमें साफ—साफ होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज की स्थापना पर जोर दिया गया है।
अन्य राज्यों में पढने जाने के लिए मजबूर छात्र
विधि आयोग ने उत्तरप्रदेश होम्योपैथिक चिकित्सा महाविद्यालय अधिनियम संख्या 21,1981 को समाप्त कर दिया। विधि आयोग ने अपनी दलील में कहा कि उत्तराखंड में अब उक्त अधिनियम की आवश्यकता नहीं है। साथ ही विधि आयोग ने उत्तराखंड सरकार को यह सुझाव भी दिया है कि पर्वतीय राज्य में राजकीय होम्योपैथिक कॉलेज की स्थापना हो जाने से यहां के होम्योपैथ में रुचि रखने वाले विद्यार्थी होम्योपैथिक की पढ़ाई कर सकते हैं। अंडर ग्रेज्युएट (यूजी) और पोस्ट ग्रेज्युएट (पीजी)जैसी डिग्रियों के लिए उत्तराखंड के विद्यार्थियों को पश्चिम बंगाल,महाराष्ट्र,राजस्थान,तेलांगाना,केरला,बिहार और उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में दाखिले के लिए जाना पड़ता है। पूरे देश में 148 सरकारी होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज हैं। जहां यूजी और पीजी की पढ़ाई होती है।
राज्य में निजी कॉलेजों की संख्या भी कम
उत्तराखंड में निजी कॉलेजों की संख्या एक दो से ज्यादा नहीं है। जिसमें एक कॉलेज की मान्यता भी केंद्र सरकार ने मानक पूरे नहीं होने की वजह से रद्द कर दी है। यहां बताते चलें कि साल 2018 में पूरे देश से 50 निजी होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज की मान्यता केंद्र सरकार ने रद्द की है। उत्तराखंड में सरकारी होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज नहीं होने की वजह से उत्तराखंड के होम्यिोपैथ में रुचि रखने वाले विद्यार्थी अन्य प्रांतों में होम्यिोपैथी की शिक्षा के लिए भटकते रहते हैं। सरकारी मेडिकल कॉलेजों में दाखिला नहीं होने पर विद्यार्थियों को निजी कॉलेजों में दाखिला लेना पड़ता है। निजी कॉलेजों का कोई भरोसा नहीं होता है कि वे सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त हैं या नहीं। पड़ताल के बाद पता चलता है कि कॉलेज फर्जी चल रहे हैं।
माना जा रहा है कि विधि आयोग की रिपोर्ट पर उत्तराखंड सरकार काफी गंभीर है। विधि आयोग के अध्यक्ष राजेश टंडन का मानना है कि कैबिनेट में सरकारी मेडिकल कॉलेज की स्थापना पर जल्द ही मुहर लग जाएगी। इससे प्रदेश का काफी भला होगा।