तार में उलझे, जमीन पर गिरे
मालूम हो कि 18 अगस्त को मोल्डी में राहत साम्रगी उतारकर मौरी की तरफ जा रहा हेलीकाप्टर क्रैश हो गया था। इसमें तीन लोग मारे गए। 23 अगस्त को नगवाडा में हेलीकॉप्टर की इमरजेंसी लैंडिंग करवानी पड़ी। इसमें पायलट व को पायलट दोनों घायल हो गए। दोनों हादसों की वजह एक ही सामने आई तार में हेलीकॉप्टर में उलझना।
यह तकनीक बचा लेती जान
विशेषज्ञों के अनुसार यदि पायलट रिवर्स से लेकर हावर ( हवा में एक ही जगह पर बने रहना) की प्रोसेस करता तो हादसे ना होते। ऐसे में जानकारों के गले यह नहीं उतर रहा कि दोनों पॉयलटों ने हेलीकॉप्टर को रिवर्स या हावर क्यों नहीं किया? विशेषज्ञों की माने तो किसी भी जगह फ्लाइंग करने से पहले हेलीकॉप्टर के पॉयलट इलाके के भौगोलिक फिचर्स के बारे में अच्छे से पता कर लेते हैं। पहाड़ों के बीच घाटियों से उड़ने के लिए हेलीकॉप्टर के पास पूरी जगह थी। मतलब हेलीकॉप्टर दाएं, बाएं, ऊपर, नीचे या यथास्थिति बनाए रख सकता था।
जानकारों की मानें तो जब पॉयलट को कोई टॉस्क सौंपा दिया जाता है तो यह तक पता किया जाता है कि कहीं बादल फटने की नौबत तो नहीं है। मेट्रालाजिकल डिपार्टमेंट की रिपोर्ट ली जाती है। प्रतिकूल परिस्थिति देखते ही उड़ान रद्द कर दी जाती है। टैरेन यानी कि इलाके के पहाडों की बारे में , पेड़ों के बारे में, पानी और पूरे क्षेत्र के बारे में पता कर लेते हैं। दोनों को सीनियर पॉयलट बताया गया है।
निजी कंपनियां कर रही खेल
जानकारों का मानना है कि एक पॉयलट जब कम से कम दो सौ घंटे की फ्लाइंग करता है तब ही वह परिपक्व माना जाता है। हांलाकि कई बार प्राईवेट कंपनियां रुपए बचाने के लिए दो सौ घंटे से कम के फ्लाइंग वाले पॉयलट को भी रख लेती हैं। अन्यथा उन्हें दो लाख रुपए प्रति माह तक देने पड़ जाते हैं। ऐसे में दो हेलीकॉप्टरों का ऐसे दुर्घटनाग्रस्त होना संशय खड़ा करता है।
बेबस सरकार, हादसों को न्यौता
क्या इस समय सरकार को राहत कार्य के लिए हेलीकॉप्टर की जरुरत है इसलिए प्राइवेट कंपनियों से सवाल जवाब नहीं किए जा रहे। इस मामले में डीजीसीए की चुप्पी भी समझ नहीं आती। सवाल यह है कि चारधाम यात्रा के दौरान यही पायलट हेलीकॉप्टर पैसेंजर बैठा कर चलाएंगे। ऐसे में तार सामने आया तो क्या करेेंगे ? उस समय कौन जिम्मेदार होगा डीजीसीए या राज्य सरकार ?