नहीं हुई मरम्मत तो बढ़ सकता है ख़तरा
रिपोर्ट में भू वैज्ञानिकों ने कहा है कि तत्काल बलियानाला का ट्रीटमेंट शुरू नहीं किया गया तो झील के आसपास के क्षेत्रों के अलावा नैनीताल शहर को भी भयंकर खतरा है। वैसे भी नैनीताल शहर भूस्खलन की भू खंड पर ही बसा हुआ है।
5 से 7 साल तक चल सकता मरम्मत कार्य
नैनीताल के बलियानाला का ट्रीटमेंट कम से कम 5 से 7 तक साल तक चलने की संभावना है। इसके अतिरिक्त एक साथ बलियानाला का ट्रीटमेंट तीन स्थानों पर करना होगा। उसके बाद ही बलियानाला को भूस्खलन से बचाया जा सकता है। यदि तत्काल बलियानाला का ट्रीटमेंट वैज्ञानिक सुझावों पर नहीं शुरू किया गया तो तलीताल अंचल को भयंकर खतरा है। सिर्फ इतना ही नहीं लंबे चलने वाले ट्रीटमेंट को यदि अनियमित किया गया तो इसका असर नैनीताल शहर पर भी पडऩे की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।
त्रिस्तरीय तरीके से हो ट्रीटमेंट
पिछले 3 अक्टूबर को नैनीताल गई 9 सदस्यीय भू वैज्ञानिकों की टीम ने मंगलवार को अपनी रिपोर्ट शासन की सौंप दी है। शासन को सौंपी गई 11 पन्नों की रिपोर्ट में भू वैज्ञानिकों के अलावा पीडब्ल्यूडी और सिंचाई विभाग के इंजीनियर भी शामिल हैं। वैज्ञानिकों ने शासन को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया है कि बलियानाला भविष्य में भूस्खलन की गिरफ्त में नहीं आए इसलिए इसका ट्रीटमेंट त्रिस्तरीय तरीके से की जानी चाहिए। ट्रीटमेंट में इसका नीचला हिस्सा, तटीय क्षेत्र जहां कटाव की संभवाना है और इसके अलावा बलियानाला के उपरी हिस्सा का ट्रीटमेंट होना चाहिए। ट्रीटमेंट की शुरूआत बलियानाला के नीचे से शुरू किया जाए और बलियानाला के उपर तक किया जाना चाहिए। भू वैज्ञानिकों ने अपनी रिपोर्ट में इस बात की आेर भी इशारा किया गया है कि ट्रीटमेंट में देरी नहीं किया जाए। वरना तलीताल को भयंकर नुकसान हो सकता है। साथ ही नैनीताल शहर भी भूस्खलन की चपेट में आ सकता है।
भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील है नैनीताल
भू वैज्ञानिक यह मान रहे हैं कि सबसे ज्यादा शुरूआती खतरा तलीताल को ही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रीटमेंट के दौरान किसी भी तरह की कोई लापरवाही नहीं बरती जाए। साथ ही ट्रीटमेंट के दौरान किसी भी तरह का ब्रेक बलियानाला के लिए ठीक नहीं है। भूस्खलन का खतरा मंडरा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक भूस्खलन के अलावा नैनीताल जनपद भूकंप के लिहाज से आवंटित चौथी श्रेणी में शामिल है जो काफी संवेदनशील है। भू वैज्ञानिकों ने यहां पर लोकल फाल्ट का भी जिक्र किया है। भू वैज्ञानिकों ने माना है कि तलीताल का अंचल में चूना पत्थर की मात्रा ज्यादा है। साथ ही स्लेट की पतली परतें भी ज्यादा हैं। जो काफी घातक है।
ट्रीटमेंट कार्य की हो निरंतर मानिटरिंग
भू वैज्ञानिकों ने अपनी रिपोर्ट में लोकल फाल्ट का उल्लेख करते हुए कहा है कि इससे चट्टानें कमजोर होती हैं और यही स्थिति इस क्षेत्र की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रीटमेंट के दौरान ही एेसे पौधे लगाए जाएं जिनमें पानी सोखने की क्षमता हो। इस बारे में वन एवं पर्यावरण विभाग की भी राय ली जाए। भू वैज्ञानिकों का कहना है कि ट्रीटमेंट के दौरान निरंतर मानिटरिंग की भी आवश्यकता है। मानिटरिंग विशेषज्ञों की देखरेख में ही की जानी चाहिए।
इन लोगों की टीम ने पेश की रिपोर्ट
उल्लेखनीय है कि बलियानाला की बदतर हालात को देखते हुए सरकार ने 9 सदस्यीय समिति का पिछले दिनों गठन किया था। समिति के सदस्यों ने पिछले तीन अक्टूबर से 6 अक्टूबर तक वहां का स्थलीय परीक्षण करने के बाद शासन को रिपोर्ट सौंप दिया है। बलियानाला गई टीम में आईआईटी रुडक़ी के प्रो.संदीप सिंह,आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के अधिशासी निदेशक डा.पीयूष रौतेला,सीएसआईआर रुडक़ी के वैज्ञानिक डा.डीपी कानूनगो,एफआर आई के वैज्ञानिक डा.परमानंद कुमार,आईआईआरएस के वैज्ञानिक डा.शोभन एल चट्टराज,डब्ल्यू आई एच जी के वैज्ञानिक डा. एस एस भाकुनी,जीएसआई की ज्योलाजिस्ट नीतू चौहान,सिंचाई विभाग (कुमाऊं) के मुख्य अभियंता एमसी पांडेय,पीडब्ल्यूडी ,देहरादून के शिव कुमार राय,पीडब्ल्यूडी,नैनीताल के पूर्व अभियंता सीएस नेगी,जिला टास्क फोर्स ,नैनीताल के लेखराज ,आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के डा.केएस सजवाण और डीडीएमआे नैनीताल के शैलेश कुमार शामिल हैं।
‘सरकार को बलियानाला ट्रीटमेंट का प्लान सौंपा जा चुका है। अब एक साथ ही सारे ट्रीटमेंट शुरू होंगे तभी असर होगा। ’ प्रो. संदीप सिंह ,आईआईटी रुडक़ी
‘इससे खतरा तो नैनीताल शहर को भी है। लिहाजा शासन को अब तुरंत ट्रीटमेंट पर ध्यान देना चाहिए।’ डा.पीयूष रौतेला ,आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र ,देहरादून