गुढ़ारोड निवासी व्यापारी अब्दुल अजीज का कहना है गत 16 वर्ष से वह कारोबार से जुड़ा हुआ है। प्रतिवर्ष अक्टूबर माह शुरू होते ही स्टेशन रोड पर रूई धुनाई की मशीन लगा लेता है। जो कि फरवरी-मार्च माह तक रजाई भराई-बुनाई का काम करता है। उन्होंने बताया कि प्रतिदिन 8 से 10 रजाई-गद्दों की जोडिय़ों में रुई भराई बुनाई कर देते हैं। रुई का भाव भी गत वर्ष की तुलना में 25 फीसदी बढ़ गया है।
गत वर्ष 2017 में रुई का भाव 115 रुपए किलोग्राम था, जो कि अब बढ़कर150 रुपए किलो तक पहुंच गया है। रजाई-गद्दों में रुई धुनाई से लेकर तैयार करने तक की मजदूरी 120 रुपए तय है। ऐसे में एक मजदूर एक दिन में पांच-रजाई गद्दे भर देता है, लेकिन मेहनत के अनुसार मेहनताना नहीं मिल पा रहा है। जबकि इसी में धागा एवं रूई धुनाई भी शामिल है। ऐसे में मजदूरी नहीं निकलने पर रजाई-गद्दे एवं तकियों की खोलियां भी रखकर बेचना शुरू कर दिया है। उन्होंने बताया कि पहले रजाई की खोली की कीमत 150 से 250 के बीच थी, जो कि अब बढ़कर तीन सौ रुपए को पार कर गई है।
उन्होंने बताया कि सिकंदरा, राहुवास, किशनगढ़ की रजाई व इरोड़, सोलापुर एवं कानुपर के गद्दों की मांग अधिक बढ़ रही है। ग्राहक के एक जोड़ी-रजाई गद्दे तैयार कराने पर करीब 12 सौ रुपए तक का खर्चा आ रहा है। ऐसे में महंगाई के कारण कारोबार पर मंदी का असर दिखाई देने लगा है। सर्दी के शुरू होने के साथ ही बसवा रोड, हाई स्कूल चौक, सिकंदरा रोड एवं राज बाजार में रुई-धुनाई की मशीनें लग चुकी है। जहां मशीनों पर मजदूर काम करते दिखाई देने लगे हैं।
शादी समारोह शुरू होने वाले हैं। ऐसे में लोग भी रजाई-गद्दे भरवा रहे हैं, वहीं टैण्ट व्यवसायी भी एक साथ ठेका देकर रजाई गद्दे भरवाने लगे हैं। लोगों ने भी गर्म व ऊनी वस्त्र निकाल लिए हैं। जहां सुबह-शाम पहना शुरू कर दिया है। (निसं.)