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सख्ती लाई लिंगानुपात के अन्तर में कमी

locationदौसाPublished: Jul 16, 2019 07:43:15 am

Submitted by:

gaurav khandelwal

Sexratio is Good in Dausa:- 2011 में 1 हजार बालकों पर 865 बालिकाएं जन्म रही थी और अब जन्म ले रही हैं 938

beti bachao

PCPNDT Act News

दौसा. बेटे-बेटियों में भेदभाव नहीं करने, लिंगपरीक्षण में जांच पर सरकार की सख्त पाबंदी एवं पीसीपीएनडीटी कानून आने के बाद प्रदेश के साथ दौसा जिले में जन्म लेने वाले बालक-बालिकाओं के लिंगानुपात में सुधार आया है। हालांकि दोनों का अनुपात बराबर आने में तो अभी समय लगेगा, लेकिन बेटियों की संख्या में निरंतर बढ़त हो रही है। चिकित्सा विभाग की प्रभावी कार्रवाई से कन्या भ्रूण हत्या पर भी रोक लगने लगी है। इससे घरों में नन्ही परियों की किलकारियों में बढ़ोतरी होने लगी है।

वर्ष 2001 के मुकाबले 2011 में प्रदेश में सबसे ज्यादा गिरावट के साथ दौसा जिले में 1 हजार बालकों पर बालिकाओं की संख्या मात्र 865 ही रह गई थी। जबकि प्रदेश में यह संख्या 888 थी। ऐसे में चिकित्सा विभाग ने भ्रूण लिंगजांच करने वालों की धरपकड़ के लिए मुखबिर योजना में प्रोत्साहन राशि बढ़ा कर ढाई लाख रुपए करने एवं सोनोग्राफी मशीनों की निगरानी के लिए एक्टिव टे्रकर लगाने एवं भ्रूण परीक्षण कराने व करने वालों को खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करने के बाद सुधार आया।
8 वर्ष में अन्तर 135 से घट कर हो गया 62


दौसा जिले में वर्ष 2011 में 1 हजार बालकों पर 865 बालिकाओं का जन्म हो रहा था। उस समय अन्तर 135 था। बालिकाओं की संख्या कम होने से सरकार चिंता में थी। पीसीपीएनडीटी कानून लाया गया। लिंगजांच परीक्षण करने वालों की धरपकड़ की गई। सोनोग्राफी मशीनों पर एक्टिव ट्रेकर लगाए गए। सरकार बालिकाओं के जन्म से लेकर उनके युवा होने तक कई योजनाएं लाई। स्कूलों मुफ्त शिक्षा के साथ उनको किताबें दी गई। माता-पिताओं को बेटी व बेटों में कोई भेद नहीं होने के लिए समझाया गया। इन सब का असर यह हुआ है कि आज 1 हजार बालकों पर बालिकाओं की संख्या 938 पहुंच गई है।
गांवों में भी बदले हालात


शहरों में तो बालिकाओं की शिक्षा का काफी पहले से प्रचलन हो गया था, लेकिन गांवों में दो दशक पहले तक बालिकाओं को लोग बहुत कम पढ़ाते थे। पूरे गांव में इक्की-दुक्की बालिकाएं ही स्कूल जाती देखी जाती थी। 18 वर्ष की उम्र से पहले ही उनके पीले हाथ कर दिए जाते थे। आज स्थिति यह है हर घर में चाहे बालक हो या बालिकाएं परिजन सभी को बराबर पढ़ाते हैं। स्कूल में जितनी संख्या बालकों की है, उतनी ही बालिकाओं की मिल जाती है। अब तो गांवों की कईबालिकाएं सरकारी नौकरियों में भी अच्छे पदों पर आसीन है। गांव की बेटियां वार्ड पंच, सरपंच से लेकर बड़े- बड़े राजनीतिक पदों पर हैं।
दहेज पर रोक लगे तो हो चिंता कम


सरकार बालक-बालिकाओं के बीच लिंगानुपात के अन्तराल को कम करने में तो कामयाब हो रही है, लेकिन इस वक्त सबसे बड़ी सामाजिक बुराई दहेज है। बालिकाओं को अच्छी पढ़ाई कराने एवं कामयाब बनाने के बाद भी माता-पिता को शादी में भारी दहेज देना पड़ रहा है। यदि इस सामाजिक बुराई पर पूर्णत: पाबंद लग जाए तो माता-पिता को बेटियां बोझ महसूस नहीं होगी।
फैक्ट फाइल
वर्ष बालिका लिंगानुपात
2014-15 930
2015-16 919
2016-17 935
2017 -18 928
2018- 19 938

इनका कहना है…


लिंगानुपात में सुधार सरकार के निरन्तर प्रयास से आया है। पीसीपीएनडीटी एक्ट के शिकंजे से सोनोग्राफी मशीनों पर लिंगपरीक्षण का काम खत्म हो गया। वहीं बेटी जागरूकता कार्यक्रमों एवं सरकार की बेटियों के लिए कई योजनाओं के संचालन से भी लिंगानुपात का अंतर कम होता जा रहा है।
मुनिन्दर शर्मा, जिला समन्वयक, पीसीपीएनडीटी सैल, दौसा

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