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एक पेड़ के इर्द-गिर्द सिमट गई इस शख्स की जिंदगी, 12 साल से यहीं होती है सुबह और शाम, देखकर हर किसी की आंखे हो जाती है नम

locationदौसाPublished: Feb 12, 2019 05:05:04 pm

Submitted by:

dinesh Dinesh Saini

12 साल पहले सरदारशहर में किसी काम से गया था यहां से जब वापस घर आया तो कुछ देर बाद अजीब-अजीब हरकतें करने लगा…

Man
– रमेश गौड़
चूरू/सरदारशहर। लोहे की बेडिय़ों से जकड़ी हुई जिंदगी। हर आने जाने वाले को निहारती हुई उसकी आंखे मानो यही कहती है कि मुझे भी इन बेडिय़ों से मुक्ती दिलाओ। जब उसकी आंख से आंख मिलती है तो मानो कलेजा कांप पड़ता है। यह दर्द भरी कहानी है सरदारशहर से 33 किलोमीटर दूर गांव शिमला के लालचंद जाट की। आज से तकरीबन 12 साल पहले लालचंद किसी काम से अपने गांव से सुबह हंसी खुशी सरदारशहर गया था। लेकिन उस समय लालचंद को क्या पता था जब वह फिर से शाम को अपने गांव आएगा तो उसकी जिंदगी नर्क बन जाएगी। जहां आज हम अपने पालतू जानवरों की भी स्वतंत्रता का पूरा ख्याल रखते हैं वहीं लालचंद की जिंदगी एक पेड़ के इर्द-गिर्द ही सिमट कर रह गई है। लालचंद की सुबह जहां होती है वहीं उसकी शाम हो जाती है।
ग्रामीणों ने बताया कि लालचंद 12 साल पहले सरदारशहर में किसी काम से गया था यहां से जब वापस घर आया तो कुछ देर बाद अजीब-अजीब हरकतें करने लगा और बाद में लालचन्द की ये हरकते बढ़ती गई और धीरे-धीरे लालचंद मानसिक रोगी बन गया। हालात बेकाबू हुए तो घर वालों ने बीकानेर और जयपुर के बड़े-बड़े अस्पतालों में लालचंद का इलाज करवाया। लाखों रुपए खर्चा करने के बाद भी लालचंद की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। लालचंद किसी को हानि ना पहुंचा दें इसलिए लालचंद के परिवार ने थक हारकर लालचंद को सालो से बेडिय़ों से बांध रखा है।
लालचंद के परिजनों का कहना है कि मानसिक रोगी होने की वजह से उसे घर में साकळ से बांध रखा है। वैसे तो लालचन्द चुपचाप बैठा रहता है, पर लालचंद को बीच बीच में ऐसे सरारे उठते हैं जिसे वह बेकाबू हो जाता है और लोगों के घरों में पत्थर मारने लगता है। लालचंद पिछले सालों से अब अपने घर में ही एक पेड़ से सांकळ से बंधा रहता है।
घरवालों ने बताया कि लालचंद की पेंशन शुरू करवाने के लिए काफी प्रयास किए, लेकिन आज तक इसकी पेंशन शुरू नहीं हो सकी है। स्थिति यह है कि लालचंद सर्दी-गर्मी- बारिश के मौसम में भी बाहर ही सोता है। लालचन्द को जिस पेड़ से बाँधा गया है उसके पास ही शौचालय भी बना दिया है और पास ही उसके लिए एक छोटी सी झोपड़ी बना दी गयी है। सांकल से खोलने पर वह कभी भी कोई बड़ी हरकत करने लग जाता है।
परिवार में कोई नहीं है कमाने वाला
लालचंद के परिवार की मजबूरी यह है कि उनके परिवार में कोई भी कमाने वाला नहीं है। बड़ी मुश्किल से लालचंद के बुजुर्ग पिता और मां दूसरों के घरों में मजदूरी करके घर के सदस्यों का पालन पौषण करते हैं। लालचंद की मां ने बताया कि पहले तो शुरू में लालचंद का जयपुर बीकानेर में इलाज करवाया। इलाज के दौरान जेवरात तक बिक गए। इस दौरान उनकी जमीन व लालचन्द की मां के गहने भी बिक गये। अब तो दो वक्त की रोटी का भी जुगाड़ बड़ी मुश्किल से होता है। ऐसे में लालचंद का इलाज कराने में परिवार सक्षम नहीं है। इस दुख से लालचंद के बड़े भाई की भी मानसिक स्थिति खराब हो गई है।
संवाददाता ने जब लालचंद से बात करनी चाही तो वह अजीब-अजीब बातें करने लगा। जब पूछा गया कि वह खुलना चाहता है तो उसने कहा हां, लालचंद ने कहा कि वह खेत जाना चाहता है। लालचंद की इन्हीं हरकतों की वजह से लालचंद का बड़ा भाई भी मानसिक रूप से परेशान हो चुका है और बहकी बहकी बाते करता है। सरकार निशुल्क इलाज कराने के बड़े-बड़े दावे करती है। वही लालचंद की सुनने वाला कोई नहीं है।
लालचंद के घर वालों ने बताया कि वर्तमान में घर की हालात बहुत खराब है और वह लालचंद का इलाज नहीं करवा सकते। उनके पास आने-जाने के लिए बस का किराया तक नहीं है। ग्रामीणों ने बताया कि लालचंद की यह दशा देखकर हमारा भी दिल रोता है। ग्रामीणों ने कई बार लालचंद की मदद करने की कोशिश की लेकिन इलाज में खर्चा अधिक होने की वजह से लालचंद का इलाज संभव नहीं हो पाया।
ग्रामीणों का कहना है कि यदि सरकार लालचंद की मदद को आगे आए तो लालचंद को बेडिय़ों से मुक्ति मिल सकती है। लालचंद की मुरझाई आंखें हर आने-जाने वाले व्यक्ति को इस नजर से देखती है कि शायद कोई मुझे इन बेडिय़ों से मुक्ती दिला देगा। लालचंद के साथ साथ परिवार और गांववासी भी लालचंद को बेडिय़ों से मुक्त होते हुए देखना चाहते है। उनका कहना है कि लालचंद का इलाज हो जाता है और उसकी बेडिय़ा हट जाती है तो गांव में होली और दिवाली दोनों एक साथ मनाई जाएगी। परिवार और ग्रामीणों को अब भी आशा है शायद लालचंद फिर से अपने खेतों में जा पाएगा, गांव की गलियों में घूम पाएगा और परिवार का सहारा बनेगा।

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