वर्ष 2021 में इलेक्ट्रिक लाइन बिछाई गई। जिसके बाद से रेल गाड़ियों ने रफ्तार पकड़ी। दरअसल, बांदीकुई से आगरा रूट पर सबसे पहले ट्रेन चली थी। जयपुर और दिल्ली मार्ग पर भी रेल यातायात शुरू हो सका। इस साल के मार्च माह में दौसा से गंगापुर रेलवे लाइन शुरू कर दी गईं हैं। अब बांदीकुई से आगामी दिनों में गंगापुर सिटी, सवाईमाधोपुर, कोटा होते हुए मुबई की ट्रेन कनेक्टिविटी जल्द होगी।
पहले थे स्टीम व डीजल शेड
बांदीकुई रेल नगरी का 150 साल पहले रेल का सुहाना सफर हुआ था। पहले रेल नगरी में स्टीम और डीजल शेड स्थापित था। उस समय आगरा से वाया भरतपुर, बांदीकुई के मध्य मीटरगेज लाइन बिछाई गई थी। अंग्रेजों के द्वारा बनाए गए लोकोशेड में स्टीम इंजन का रखरखाव किया जाता था। लोकोशेड़ में तैनात थे करीब डेढ़ से दो हजार रेल कर्मचारी
करीब डेढ़ से दो हजार रेल कर्मचारी लोकोशेड़ में तैनात थे। जिन्हें मीटर गेज से 1993 के करीब ब्रॉड गेज में कन्वर्जन के दौरान धीरे धीरे अन्यत्र स्थानांतरित कर दिया गया और बांदीकुई लोको शेड को भी बंद कर दिया गया। वर्ष 2021 में इलेक्ट्रिक का कार्य जोरों पर किया गया और रेलवे ट्रैक का विद्युतीकरण हो गया। आज बांदीकुई से जयपुर, दिल्ली, आगरा की ओर इलेक्ट्रिक ट्रेन अपनी रफ्तार पकड़ती नजर आती हैं।
अंग्रेजों को भाया बांदीकुई
कहा जाता है कि 1860 के दशक में अंग्रेज पहली बार बांदीकुई पहुंचे तो उनको यह जगह बेहद पसंद आई। उसके बाद अंग्रेजों ने यहां के पानी के सैंपल इंग्लैंड भेजे। जहां से सैंपल पास होने के बाद में अंग्रेजों ने रेल नगरी के तौर पर विकसित करने का फैसला लिया। इसके बाद अंग्रेजों सुनियोजित तरीके से करीब चार सौ से ज्यादा बीघा भूमि पर रेलवे काॅलोनी और दफ्तर विकसित किए। इसके बाद 1874 में बांदीकुई से आगरा के बीच पहली रेल की शुरुआत की गई।
रेल नगरी का फिर लौटे वैभव
बांदीकुई कस्बा राजस्थान में सबसे पहले रेल सेवा से जुड़ने के बाद यहां रेलवे के संसाधन और संस्थान बढ़ते गए। यहीं कारण है कि रेलवे के द्वारा यहां लोको शेड स्थापित किया गया था। इतना ही नहीं यहां रेलवे का सबसे महत्वपूर्ण कार्यालय भी स्थापित किया गया था, लेकिन बाद में इसे जयपुर शिफ्ट कर दिया। लेकिन, रेल नगरी आज अपने उजड़े चमन पर आंसू बहा रही हैं। ऐसे में रेलवे को रेल नगरी बांदीकुई का वैभव फिर से लौटाना चाहिए।