उनका नाम बिरसा मुंडा ना रखकर विरसा डेविड नाम दिया। पढ़ाई के दौरान इनकी चोटी काट दी गई, धर्म परिवर्तन कराया गया। जिससे उनको मन में बहुत ही आत्मग्लानि हुई। अपनी आंखों के सामने खेती-बाड़ी करने वाले मुंडा जनजाति के लोगों को अंग्रेज सताते व धर्म परिवर्तन करा देते। मुंडा जनजाति के लोगों की सेवा व समाज को एकजुट करने जनजाति समाज के लोग उन्हें भगवान मनाने लगे थे। जिसके कारण अंग्रेज सन 1900 में लगान माफी के लिए आंदोलन शुरू कर दिया। सन 1800 से 1895 में उन्हें केंद्रीय कारागार मैं 2 वर्ष की सजा हुई। सजा उपरांत उन्होंने प्रतिज्ञा ली की अपने जनजाति समाज की रक्षा करेंगे जिसके कारण उन्हें धरती का बाबा नाम भी दिया गया। 1897 से लेकर 1900 तक मुंडा जनजाति व अंग्रेज सिपाहियों के बीच में जंग होती रही।
सन 1898 मेंं जब अंग्रेज सेना हारने के बाद आदिवासी समाज के लोगों को बड़ी संख्या में गिरफ्तार किया गया । सन उन्नीस सौ में दामू बाड़ी पहाड़ी पर और एक पुन: संघर्ष हुआ उसमें समाज के बहुत सारे बच्चे एवं महिलाओं की जानें गई। उनके शिष्य भी जो उनका हाथ बटाते थे उन्हें भी धीरे धीरे कर मार दिया गया। 3 फरवरी सन उन्नीस सौ मे बिहार बॉर्डर के पास चक्रधरपुर मैं उन्हें गिरफ्तार किया गया। विरसा के जीवन की अंतिम सांसें 9 जून उन्नीस सौ में रांची के कारागार में हुई। बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ़, अंडमान, पश्चिम बंगाल इन सभी जगहों में आज ही के दिन इनकी जन्म शताब्दी बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है।
समाज में सत्य की राह पर चलने, शिक्षा प्राप्त करने के लिए नशा मुक्ति होकर सप्ताह में एक बार बृहस्पतिवार के दिन धरती पर हल ना चलाने की व धरती मां को सप्ताह में एक बार विश्राम करने देने की बात करते हुए धर्मांतरण पर विशेष रोक लगाई और बहुत से परिवारों को घर वापसी भी कराया। मुंडा जनजाति के लोग आज ही के दिन धरती के इस महानायक उनकी आभा का बखान करते हुए उन्हें भगवान बिरसा मुंडा का दर्जा दिया। उनके मुख से निकलने वाली वाणी अक्सर सत्य होती थी। जिसे आज भी जनजाति समाज के लोग बड़े ही आदर सम्मान के साथ नाम लेते हैं।