ममता की बौखलाहट ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं
बंगाल में इस तनातनी के बाद कई सवाल खड़े हो गए हैं। सबसे पहला सवाल यही खड़ा हो गया है कि आखिर कमिश्नर के घर में ऐसे क्या दस्तावेज हैं, जिन्हें बचाने के लिए ममता खुद आगे आ गई हैं? आखिर शारदा चिट फंड घोटाले की जांच ममता बनर्जी क्यों घबरा रही हैं? इन सवालों के बीच आपको बताते हैं कि आखिर शारदा चिट फंड घोटाला क्या है और कब हुआ?
शारदा चिट फंड घोटाला
करीब 3 हजार करोड़ रुपए का ये घोटाला साल 2013 में सामने आया था। इस घोटाले ने देश की सियासत को हिला कर रख दिया था। इस घोटाले में पश्चिम बंगाल की चिटफंड कंपनी शारदा ग्रुप ने करीब 10 लाख लोगों को ठगा था। इस घोटाले से कई सियासी तार जुड़े होने की भी खबरें आती रही हैं। इस घोटाले में आम लोगों को ठगने के लिए कई लुभावन ऑफर दिए। सागौन से जुड़े बॉन्ड्स में निवेश से 25 साल में रकम 34 गुना करने का ऑफर दिया। वहीं आलू के कारोबार में निवेश के जरिए 15 महीने में रकम दोगुना करने का सपना दिखाया। शारदा ग्रुप ने 10 लाख लोगों के पैसे खाए।
जब रकम लौटाने की बारी आई तो 20,000 करोड़ रुपये लेकर दफ्तरों पर ताला लगा दिया। घोटाले के खुलासे के बाद जब एजेंटों से निवेशकों ने पैसे मांगने शुरू किए तो कई एजेंटों ने जान तक दे दी थी। इस घोटाले को लेकर पश्चिम बंगाल की ममता सरकार पर ही सवाल खड़े हुए थे।
साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम राज्य के पुलिस को आदेश दिया था कि वो सीबीआई के साथ जांच में सहयोग करें और इस घोटाले की सभी जानकारी सीबीआई को दें। अप्रैल में बालासोर और ओडिशा में सैकड़ों निवेशकों ने समूह पर आरोप लगाया था कि उच्च लाभ का वादा कर उनसे पैसा लिया गया था, जिसे पूरा नहीं किया गया।
तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कुणाल घोष भी हुए थे गिरफ्तार
शारदा घोटाले में जब जांच हुई तो टीएमसी के वरिष्ठ नेता कुणाल घोष भी गिरफ्तार किया गया। इसके अलावा शारदा समूह की पूर्व कर्मचारी ने शारदा के प्रमोटर सुदीप्त के खिलाफ वेतन भुगतान नहीं करने का मामला दायर कराया था। इसी मामले में सुदीप्त बाद में गिरफ्तार हुए।