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जस्टिस नवीन सिन्हा, जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस केएम जोसेफ की बेंच ने एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि अगर मेडिकल रिपोर्ट में दुष्कर्म की पुष्टि होती है, बावजूद इसके दुष्कर्म पीड़ित आरोपी का बचाव करती है या उसके खिलाफ कानून लड़ाई नहीं लड़ना चाहती, तभी भी उसके खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है। आपको बता दें कि कोर्ट ने इसी तरह के एक मामले में दोषी को 10 साल की सजा सुनाई। जबकि इस केस में दुष्कर्म पीड़िता अपने बयान से बदल गई थी और उसने रेप न होने की बात कही थी। तीन सदस्यी बेंच ने कहा कि ‘क्रिमिनल ट्रायल का मतलब सच्चाई का पता लगाना है। ऐसे मामलों में आरोपी या पीड़ित किसी को यह इजाजत नहीं कि वह अपने बयान से पलटकर कोर्ट का मजाक बनाए और न्यायपालिका का समय नष्ट करें।
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2004 के केस में हुई सुनवाई
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी 2004 के उस केस में सुनवाई के दौरान कि जिसमें पीड़ित के साथ केवल 9 साल की उम्र में दुष्कर्म किया गया था और उसकी मां की ओर से एफआईआर दर्ज कराई गई थी। उसी दिन पीड़िता की मेडिकल जांच कराई गई थी। इस मामले में कार्रवाई करते हुए पुलिस ने पीड़िता की पहचान पर आरोपी को गिरफ्तार भी किया था। वहीं, घटना के छह महीने बाद पीड़िता ने कोर्ट के सामने पीड़िता और मुख्य गवाह ने अपना बयान बदल दिया था। ऐसे में ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया था।