पंडित दीनदयाल उपाध्याय मेडिकल कॉलेज से संबंध राजकीय डेडराज भरतिया अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डा. संदीप कुल्हरि ने बताया कि ग्लूको सेरिब्रोसाइडेज एन्जाइम ( Glucocerebroside Eenzyme ) की कमी से बच्चों में गोचर डिजीज की बीमारी होती है। इसकी वजह से घातक वसायुक्त तत्व शरीर में जमा हो जाते हैं। जो मुख्यतया लीवर, तिल्ली, हृदय तथा हड्डियों को प्रभावित करते है। इसके लक्षण मरीज के हिसाब से परिवर्तित होते रहते हैं।
यह बीमारी तीन प्रकार की होती है ( Type of Gaucher’s Disease )
प्रथम : नॉन न्यूरोपैथिक ( Non Neuropathic ) , इस बीमारी के मरीज विश्व में सबसे अधिक पाए जाते हैं। यह बाल्य अवस्था से लेकर युवा अवस्था तक कभी भी हो सकती है। यह मस्तिष्क को प्रभावित नहीं करती। इससे लीवर, तिल्ली व हृदय संबंधी बीमारी होती है।
द्वितीय : एक्यूट न्यूरोपैथिक ( Acute Neuropathi ) या इन्फेंटाइल सेरिब्रल गोचर्स डिजीज है जो करीब एक प्रतिशत लोगों में पाई जाती है। यह दिमाग को प्रभावित करती है।
तृतीय : क्रॉनिक न्यूरोपैथी फार्म ( Chronic Neuropathic ), यह विश्व के पांच प्रतिशत लोगों में पाई जाती है। यह बीमारी एशिया या यूरोप के देशों में अन्य की अपेक्षा सर्वाधिक है। भारत में तीनों श्रेणी के मरीज पाए जाते हैं। जो राजस्थान ही नहीं देश के लिए एक गंभीर चिंतनीय विषय है। यदि समय रहते इस बीमारी पर नियंत्रण नहीं किया गया तो यह काफी खतरनाक साबित हो सकती है।
उपचार : डा. संदीप ने बताया इसका उपचार लक्षणों के आधार पर होता है। लेकिन कोई विशेष कारगर साबित नहीं होता है। एंजाइम रिपलेस्मेंट थैरेपी (ईआरटी) ही इसका अभी तक सिद्ध और कारगर उपचार है। लेकिन इस बीमारी का यदि दिमाग पर असर होता है तो इसे एंजाइम थैरेपी से भी ठीक नहीं किया जा सकता है। यह थैरेपी हर दो सप्ताह से इंजेक्शन के द्वारा दी जाती है। एक इंजेक्शन की कीमत करीब एक लाख 10 हजार रुपए है। लेकिन यह थैरेपी दूसरे व तीसरे प्रकार की बीमारी में कारगर नहीं होती है। इसका उपचार काफी महंगा है। इस बीमारी से ग्रसित मरीजों के लिए सरकार कदम उठाए तो ही उपचार हो सकता है। इसकी दवा भी विश्व के चार या पांच देशों में बनती है। इस बीमारी पर रिसर्च भी चल रहा है। ऐसे में सरकार रिसर्च दवा कम्पनियों से यह दवा उपलब्ध करवाती है तो इन बच्चों का भी उपचार हो सकता है। इसके लिए सरकार को कोई कदम उठाना चाहिए। रोकथाम के लिए प्रभावित रोगियों तथा परिवारों की जेनेटिक काउंसलिंग की जाती है और नजदीकी रिश्तेदारी में शादी नहीं करने की सलाह दी जाती है।
इस बीमारी के मुख्य लक्षण ( Main Symptoms of Gaucher’s Disease )
-लीवर का असमान होना (लीवर का आगे निकलना) तथा तिल्ली (हिपेटो स्पलिनोमिगेली) का बढऩा
-रक्त कणिकाओं (आरबीसी) की कमी (एनीमिया)
-शरीर का हड्डी तंत्र विकृत हो जाता है (मामूली सी चोट में टूट जाती हैं)
-प्लेटलेट्स कम हो जाती है जिससे रक्त के स्राव होने की संभावना बढ़ जाती है।
-घातक वसा हृदय के वाल्व में जमा हो जाती है जिससे हाइपरटेंशन जैसी बीमारी बहुत जल्दी हो जाती है जो दवा से भी नियंत्रित नहीं होती है।
-इससे दिमाग पर असर होने पर बच्चे में दौरा आना, याददास्त खोना, तथा बच्चा मंदबुद्धि हो जाता है।
-इससे शरीर में अकडऩ या शिथिलता बनी रहती है।
-आंखों से दिखना बंद हो जाता है या रोशनी कम हो जाती है।
इस बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी
डीबीएच के शिशु रोग विशेषज्ञ डा. अमजद खान ने बताया कि यह बीमारी नर व मादा दोनों को बराबर प्रभावित करती है। यदि माता-पिता दोनों इस बीमारी के वाहक हैं तो जन्म लेने वाले नवजातों में 50 प्रतिशत बच्चे इस बीमारी का शिकार हो जाते हैं। पारिवारिक व नजदीकी रिश्तेदारी में जो शादियां होती हैं उनमें यह बीमारी होने की संभावना अधिक रहती है। इसलिए नजदीकी रिश्तेदारियों व परिवार में शादी करने से बचे।
जांच: डा. खान ने बताया कि शारीरिक लक्षणों तथा खून की स्पेशल जांच से ही इस बीमारी का पता लग पाता है। एंजाइम ऐसे टेस्ट से इस बीमारी का पता चल पाता है। जेनेटिक टेस्टिंग से भी इसका पता लग सकता है। इसके लिए जीबीए-जीन म्यूटेशन टेस्ट भी होता है।