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एक अभियन्ता के कंधों पर ही कैसे डाल दिया आठ का भार

locationचित्तौड़गढ़Published: Jul 20, 2019 12:42:37 pm

Submitted by:

Nilesh Kumar Kathed

अभियन्ताओं की कमी से विकास कार्यो पर असरअवैध निर्माण व अतिक्रमण रूकवाने के लिए अभियन्ता ही नहींचित्तौडग़ढ़ नगर परिषद के हाल

chittorgarh

एक अभियन्ता के कंधों पर ही कैसे डाल दिया आठ का भार

चित्तौैडग़ढ. शहर में अवैध निर्माण व अतिक्रमण की शिकायते बढ़ती जा रही है। इसके बावजूद उन्हें रोकने वाला कोई नहीं है। नगर परिषद पर इसकी जिम्मेदारी है लेकिन यहां कार्रवाई करने के लिए अभियंताओं का ही टोटा हो गया है। हालात इस कदर बिगड़े है कि धरातल स्तर पर कार्य निरीक्षण व निगरानी की जिम्मेदारी जिन कनिष्ट अभियन्ताओ (जेईएन) की होती है वे ही पास में नहीं है। परिषद में कनिष्ट अभियन्ताओं के आठ पद सृजित है लेकिन वर्तमान में एक ही अभियन्ता कार्यरत है। पहले दो अभियन्ता थे जिनमें से भी एक का कुछ दिन पहले अन्यत्र स्थानान्तरण होने से अब आठ का भार एक ही कंधे पर आने से कार्य की गुणवत्ता की सहज ही कल्पना की जा सकती है। इस अभियन्ता पर ही व्यक्तिगत मामलों में मौका रिपोर्ट तैयार करने के साथ शिकायतों की पड़ताल करने व परिषद कार्येा की देखरेख करने की जिम्मेदारी आ गई है। सहायक अभियन्ता के दो पदों में से भी एक रिक्त चल रहा है तो अधिशासी अभियन्ता के पिछले कुछ माह से रिक्त पद पर भी हाल ही भीलवाड़ा से सूर्यप्रकाश संचेती की नियुक्ति हुई है। कनिष्ट अभियन्ताओं का टोटा होने का सीधा परिषद के कामकाज पर आ रहा है। कार्यरत एक मात्र अभियन्ता के अवकाश पर रहने की स्थिति में परिषद के पास उस दिन कोर्ई शिकायत या काम आने पर कोई जेईएन ही नहीं होता।
परिषद पर इन बड़े कामों व योजनाओं की भी जिम्मेदारी
नगर परिषद अभियन्ताओं पर रूटीन कार्यो के अलावा केन्द्र व राज्य सरकार के माध्यम से संचालित हो रही कई बड़ी परियोजनाओं के कार्यो की निगरानी का भी दायित्व है। परिषद ने शहर के विकास के लिए कुछ बड़े कार्य छेड़ रखे है उनकी निगरानी का दायित्व भी अभियन्ताओं का है। परिषद अभियन्ताओं के पास वर्तमान में मुख्यमंत्री जनआवास योजना, राजीव अवास योजना, आरयूडीपी के तहत हुआ सीवरेज वर्क, अमृत योजना में पार्को का विकास, स्वच्छ भारत मिशन, जल शक्ति अभियान आदि के कार्य व निरीक्षण की जिम्मेदारी हैं। गंभीरी नदी पर बन रहे हाईलेवल ब्रिज का कार्य भी इन अभियन्ताओं के पास ही है। शहर में चल रहे सीवरेज कार्य के लिए एक सहायक अभियन्ता अलग से नियुक्त है लेकिन इनकी मॉनटरिंग का जिम्मा भी परिषद के पास ही है।
अभियन्ताओं की कमी से क्या हो रहा असर
किसी भी अवैध निर्माण या अतिक्रमण की शिकायत मिलने पर कनिष्ट अभियन्ता ही जांच करता है लेकिन परिषद के पास एक ही अभियन्ता रह जाने से ऐसे मामलों में शिकायते कागजों से बाहर ही नहीं निकल पा रही है। कई बार एक अभियन्ता के पास एक ही समय में कई कार्य बता दिए जाने पर उसके लिए प्राथमिकता तय करना भी चुनौती बन जाता है। शहर में चल रहे परिषद के निर्माण कार्यो की गुणवत्ता की जांच व देखरेख का दायित्व भी अभियन्ताओं पर ही है।
न्यास में कोई वरिष्ट अभियन्ता ही नहीं
नगर परिषद में जहां कनिष्ट अभियन्ताओं का टोटा है वहीं नगर विकास न्यास में हालात विपरीत है। वहां परिषद के एक जेईएन की तुलना में पांच अभियन्ता लगे हुए है लेकिन सहायक व अधिशासी अभियन्ता के पद ही रिक्त पड़े हुए है। ऐसे में वरिष्ट अभियन्ताओं की जिम्मेदारी भी कनिष्ट अभियन्ता ही उठा रहे है। ऐसे में न्यास के स्तर पर हो रहे कार्यो की जिम्मेदारी व निरीक्षण दोनों ही एक स्तर के अभियन्ता के पास होने से गुणवत्ता भी सवालिया दायरे में है।
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