जिला अस्पताल में कई विशेषज्ञ चिकित्सकों के पद स्वीकृत है, लेकिन अधिकतर पद खाली पड़े हुए है। कनिष्ठ शल्य (सर्जन)विशेषज्ञ में के चार पद स्वीकृत है लेकिन मात्र एक दिनेश वैष्णव कार्यरत है। डॉ. वैष्णव पिछले कुछ माह से प्रमुख चिकित्साधिकारी का भी कार्यभार संभाल रहे है। ऐसे में उन्हें सर्जरी के साथ प्रशासनिक कार्र्यो के लिए भी समय देना पड़ता है। पैथोलॉजी, शल्य, नेत्र, मेडिसन, चर्म जैसे कई महत्वपूर्ण विभागों में विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी होने से रोगी सामान्य चिकित्साधिकारियों से उपचार कराते है।
चिकित्सकों की कमी से जिला चिकित्सालय रेफर चिकित्सालय बनता जा रहा है। कोई भी गंभीर रोगी आते ही चिकित्सालय से उसे उदयपुर के लिए रेफर कर दिया जाता है। कई बार उपचार के लिए मानवीय व तकनीकी संसाधनों की कमी के चलते भी चिकित्सक किसी तरह का जोखिम लेने की बजाय
रोगी को मेडिकल कॉलेज स्तर के अस्पताल में रेफर करना बेहतर समझते है।
सुपर स्पेशलिस्ट चिकित्सकों के पद ही नहीं
जिले का सबसे बड़ा चिकित्सालय होने के बावजूद यहां सुपर स्पेशलिस्ट श्रेणी के चिकित्सकों के पद ही नहीं है। डायबिटीज, ह्दय रोग, गुर्दा रोग, मस्तिष्क से जुड़े रोग बढ़ रहे है लेकिन सुपर स्पेशिलस्ट चिकित्स्क नहीं होने से रोगी उदयपुर, जयपुर जैसे स्थानों पर ले जाकर उपचार कराने को मजबूर है।
झेलना पड़ रहा अतिरिक्त दबाव
सर्जन के तीन पद रिक्त है। मेरे पास पीएमओ का चार्ज आने के बाद ऑपरेशन में कोई कमी नहीं आई लेकिन अतिरिक्त मानसिक दबाव झेलना पड़ता है। जिला अस्पताल में लगभग आधे पद चिकित्सकों के रिक्त है इसके लिए समय-समय पर सरकार को अवगत कराते है।
डॉ. दिनेश वैष्णव,(सर्जन) पीएमओ जिला अस्पताल चित्तौडग़ढ़