जब राम को मनाने आए भरत
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक जब श्री राम वनवासकाल के दौरान चित्रकूट में प्रवास कर रहे थे तो उनके अनुज भरत (जो श्री राम से अत्यधिक प्रेम करते थे) उन्हें मनाने चित्रकूट पहुंचे और साथ में श्री राम के राज्याभिषेक को सारे तीर्थों का जल भी अपने साथ ले आए, परंतु एक वनवासी के रूप में प्रवास कर रहे श्री राम ने पिता दशरथ की आज्ञा और अपनी दृढ प्रतिज्ञा पर अडिग रहते हुए अयोध्या वापस लौटने से इंकार कर दिया.
कुंए में भरत ने डाला समस्त तीर्थों का जल
पुजारी पण्डित राम दास ने बताया कि राम की दृढ प्रतिज्ञा को सुन दुःखी हुए भरत ने राम की खडाऊं लेकर अयोध्या वापस लौटते समय रास्ते में स्थित एक कुंए में उन समस्त तीर्थों के जल को छोड़ दिया जिसे वे श्री राम के राज्याभिषेक के लिए लाए थे. जिस क्षेत्र में यह कुंआ स्थित था उस क्षेत्र को तब से भरत और जिस कुंए में जल छोड़ा गया उस कुंए यानी कूप को मिलाकर इस क्षेत्र का नाम भरतकूप पड़ गया. इस कूप के जल के स्नान से मोक्ष की प्राप्ति और असाध्य रोग दूर होते हैं. पुजारी के मुताबिक वास्तुशिल्प के आधार पर कूप के पास स्थित मंदिर काफी प्राचीन है और ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण बुंदेली शासकों द्वारा कराया गया था. मंदिर में श्री राम माता जानकी, लक्ष्मण, भरत व् शत्रुघ्न की प्रतिमाएं स्थापित हैं जो अष्टधातु की बताई जाती हैं.