अतीत के झरोखों में…1971 के परिसीमन में अलग कर दिए थे दोनों जिले, मतगणना में लगते थे दो दिन
छिंदवाड़ा•Mar 23, 2024 / 10:59 am•
manohar soni
छिंदवाड़ा.छिंदवाड़ा संसदीय सीट का चुनावी इतिहास रोचक रहा है। युवा पीढ़ी यह जानती भी नहीं होगी कि उनके बुजुर्गो ने कभी अपने लोकसभा क्षेत्र में सिवनी और बैतूल जिले को भी देखा था। आजादी के बाद पहले आम चुनाव 1952 से लेकर 1971 तक यह संयुक्त क्षेत्र था। तब हाथों से होनेवाले मतदान की वोट पर्ची की मतगणना में दो दिन लगते थे।
रेकार्ड के अनुसार सन् 1952 में देश में संसदीय चुनाव शुरू किए गए। उस वक्त छिंदवाड़ा लोकसभा सीट का क्षेत्रफल तीन जिलों को मिलाकर निर्धारित किया गया था। तब भी ये प्रदेश और देश में चर्चा का विषय थी। तब किसी भी दल के उम्मीदवारों को प्रचार में तीन सौ किमी तक का रास्ता तय करना पड़ता था। उस समय कहीं किसी राजनीतिक दल की सभा हो जाए तो लोग आसपास शहर और गांव के लोग बैलगाड़ी और पैदल तक पहुंचते थे। किसी का चुनावी पर्चा भी घर में संभालकर रखा जाता था।
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पहले चुनाव में थे 3.81 लाख मतदाता
पहले चुनाव में कुल तीन लाख 81 हजार 555 मतदाता थे, इनमें से 34 प्रतिशत यानी तीन लाख 31 हजार से कुछ ज्यादा मतदाताओं ने ही वोट डाला था। पांच साल बाद 1957 में हुए चुनाव में भैंसदेही, बैतूल, मुलताई, परासिया, पगारा, छिंदवाड़ा, सौसर, सिवनी, बरघाट शामिल हुए। 1962 में सिवनी जिले को छिंदवाड़ा से अलग कर दिया गया। छिंदवाडा में परासिया, दमुआ, मसोद, मुलताई, घोड़ाडोंगरी, बैतूल और भैंसदेही को शामिल किया गया। इस चुनाव में मतदान प्रतिशत बढ़ा और 38 प्रतिशत मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया।
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1967 के सीमांकन में जुड़े नए इलाके
1967 के लोकसभा चुनाव में छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र के सीमांकन में फिर छपारा, केवलारी, बरघाट, सिवनी को शामिल किया गया। इस बार बैतूल का कुछ हिस्सा अलग कर दिया गया। इस चुनाव में मतदाताओं का रुझान बढ़ा और मतदान प्रतिशत 39.13 हो गया। इस बार नागपुर के गार्गीशंकर मिश्रा सांसद चुने गए।
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1971 में अलग किए गए दो जिले
वर्ष 1971 में छिंदवाड़ा से सिवनी और बैतूल जिले को पूरी तरह अलग कर दिया। इसके बाद जिले के विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर छिंदवाड़ा संसदीय सीट घोषित की गई।
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तब हुआ था ये प्रयोग..1957 में चुने गए दो सांसद
एक संसदीय सीट से दो सांसद कैसे चुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन छिंदवाडा में ऐसा हुआ है। जब एक ही सीट पर एक ही पार्टी ने अपने दो अधिकृत प्रत्याशियों को खड़ा किया। नतीजों के बाद दोनों के सांसद के रूप में दिल्ली पहुंचाया गया। बात 1957 के चुनाव की है। इस समय हर चुनाव के पहले सीमांकन होता था। इस चुनाव में भैंसदेही, बैतूल, मुलताई, परासिया, पगारा, छिंदवाड़ा, सौंसर, सिवनी बरघाट और भोमा को शामिल किया गया। इस चुनाव में अजजा और सामान्य की सीट रिजर्व कर दो सांसदों वाला संसदीय क्षेत्र बना दिया गया। नारायण राव वाहिवा को अजजा और केवलद नागपुर के भीकूलाल चांडक को सामान्य वर्ग से प्रत्याशी बनाया गया। अजजा उम्मीदवारों में सबसे ज्यादा 1 लाख 21 हजार 652 वोट लेकर वाडिवा और सामान्य उम्मीदवारों में एक लाख 36 हजार 931 वोट लेकर चांडक सांसद बने। इसके बाद इस तरह। का प्रयोग दोबारा कहीं नहीं हुआ।
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