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लाखों की कमाई के बावजूद बंजर हो रहा स्टेडियम, सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ रही प्रतिभाएं

locationछिंदवाड़ाPublished: Jun 27, 2019 12:22:50 pm

Submitted by:

ashish mishra

ओलंपिक स्टेडियम की मासिक आय 75 हजार रुपए है।

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लाखों की कमाई के बावजूद बंजर हो रहा स्टेडियम, सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ रही प्रतिभाएं

छिंदवाड़ा. शौचालय से आती बदबू, ऊबड़-खाबड़ ट्रैक और गड्ढ़ों से भरा हुआ मैदान। यह पहचान हो चुकी है हमारे ओलम्पिक स्टेडियम की। हैरानी की बात यह है कि जिस मैदान में खिलाड़ी खेलते हैं उसके रखरखाव तक का भी ध्यान विगत पांच वर्षों से नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में मैदान अपनी स्थिति खुद बयां करने लगा है। जिला ओलंपिक संघ द्वारा संचालित ओलंपिक स्टेडियम की मासिक आय 75 हजार रुपए है। यह कमाई जिला ओलंपिक संघ को केवल आसपास बने 98 दुकानों के किराया से होती है। इसके अलावा दुकानों के निलाम के वक्त ओलंपिक संघ ने अमानत राशि भी जमा कराई थी जो तीन से 15 लाख रुपए है। यानि किसी दुकान से 3 लाख तो किसी दुकान से 15 लाख रुपए अमानत राशि जमा की गई है। इस अमानत राशि का ब्याज भी ओलंपिक संघ की कमाई का जरिया है। इसके अलावा बैडमिंटन खिलाडिय़ों से सुविधा के नाम पर ओलंपिक संघ 100 रुपए भी लेता है। इन सबके बावजूद भी ओलंपिक संघ स्टेडियम के रखरखाव की महज खानापूर्ति कर रहा है।

39 हजार 5 सौ रुपए होता है हर माह खर्च
जिला ओलंपिक संघ को हर माह लगभग एक लाख रुपए की आय होती है। जबकि खर्च देखें तो यहां एक स्वीपर, एक मैनेजर, दो भृत्य, एक कम्प्यूटर आपरेटर, एक चौकीदार की नियुक्ति की गई है। जिन्हें कुल मासिक वेतन 39 हजार 5 सौ रुपए दिए जा रहे हैं। इसके अलावा ओलंपिक संघ हर माह बिजली का बिल लगभग 15 हजार रुपए भरता है। वहीं ओलंपिक संघ विभिन्न खेल संघों को साल में एक बार जिला या फिर राज्यस्तर पर स्पर्धा कराने पर 20 से 40 हजार रुपए राशि देता है। इन खर्च के अलावा ओलंपिक संघ को शेष राशि से स्टेडियम का रखरखाव करना है।
पांच साल से नहीं पड़ी कापू मिट्टी
लंपिक स्टेडियम में विगत पांच वर्षों से कापू मिट्टी भी नहीं डाली गई है और न ही यहां यूरिया का छिडक़ाव हो रहा है। दरअसल कापू मिट्टी पेंच एरिया से मंगाई जाती है जो मैदान को हरा भरा रखने में मददगार है। खेल से जुड़े विशेषज्ञों के अनुसार पांच वर्ष पहले तक ओलंपिक स्टेडियम में नियम के अनुसार हर साल कापू मिट्टी एवं हफ्ते में एक से दो दिन यूरिया का छिडक़ाव होता था। इससे मैदान समतल भी रहता था और घास भी हरी-भरी रहती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं किया जा रहा है। ऐसे में मैदान में जगह-जगह गड्ढ़े हो गए हैं वहीं घास भी सूख रही है।
ऐसे में कैसे खिलाड़ी होंगे प्रतिभावान
खेल से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि ओलंपिक संघ के पास पैसा पर्याप्त है बस जरूरत है पदाधिकारियों द्वारा खिलाडिय़ों के हित के सोचने की। जिस उद्देश्य के साथ ओलंपिक स्टेडियम और संघ का निर्माण किया गया वह उद्देश्य पूरा होता नहीं दिख रहा है। एक तरफ हम अपने जिले के खिलाडिय़ों से जिला, राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रतिभा दिखाने की उम्मीद रखते हैं, लेकिन सुविधाएं की बात करें तो उन्हें एक अच्छा मैदान भी हम उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं।
दौडऩे के लिए एक अच्छा टै्रक तक नहीं
हैरानी की बात यह है कि शहर में एक भी मैदान ऐसा नहीं है जहां रनिंग ट्रैक हो। इसके अलावा जिले में अधिकतर खेलों के लिए सुविधाएं एवं अच्छे प्रशिक्षक का भी अभाव है। ऐसे में खिलाड़ी या तो जिले से पलायन कर जा रहे हैं या फिर उनकी प्रतिभा दब कर रह जा रही है।
प्रशिक्षण से ज्यादा प्रतियोगिता पर ध्यान
जिले में कुछ खेलों को छोड़ तो अधिकतर खेल का बेहतर प्रशिक्षण भी खिलाडिय़ों को नहीं मिलता। उन्हें सीधे प्रतियोगिता में खेलने के लिए आमंत्रित किया जाता है। इस स्थिति में हम अपने जिले का नाम जिले में भी रोशन नहीं कर पाएंगे।

इनका कहना है…
ओलंपिक स्टेडियम में जिन सुविधाओं का अभाव है उसे जल्द पूरा करने की कोशिश की जा रही है। जल्द ही स्टेडियम में मिट्टी डलवाई जाएगी। जो सुविधाएं नहीं हैं उसे पूरा किया जाएगा।
अरविंद चौरागड़े, सचिव, जिला ओलंपिक संघ

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