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पेंच का घाटा लगभग 430 करोड़

locationछिंदवाड़ाPublished: Nov 24, 2018 05:24:23 pm

पेंच क्षेत्र में लगभग दो सौ से अधिक कामगार बिना काम के वेतन प्राप्त कर रहे है। पेंच क्षेत्र का घाटा लगभग 430 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष हो गया है।

Coal Mines

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परासिया. कोयलांचल में पेंच क्षेत्र का बढ़ता घाटा जहां परेशान करने वाला है वहीं पेंच क्षेत्र में लगभग दो सौ से अधिक कामगार बिना काम के वेतन प्राप्त कर रहे है। पेंच क्षेत्र का घाटा लगभग 430 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष हो गया है।
3 अगस्त 2017 को भूमिगत गणपति खदान बंद की गई जिसका मेन पावर महादेवपुरी खदान में दिया गया इसके बाद भी टाउनशिप के नाम पर लगभग 90 कामगार यहां पर रखे गए है। विष्णुपुरी क्र 1 को 15 दिसंबर 2017 को बंद कर दिया गया यहां कार्यरत 332 कामगारों में 132 कर्मचारियों को विष्णुपुरी खदान क्र 2 में लोन के रूप में शिफ्ट किया गया है। बाकी कामगार वहीं रखे गए है। इसी तरह इकलहरा-बड़कुही ओपनकास्ट खदान पिछले दस माह से बंद है यहां कार्यरत लगभग साठ कर्मचारियों में अधिकांश के पास कोई काम नहीं है। एक अनुमान के अनुसार इनपर प्रतिमाह सवा करोड़ रुपए वेतन एवं सुविधाओ के रूप में खर्च किए जा रहे है। प्रबंधन द्वारा बंद खदानों के कामगारों को प्रभावी रूप से अन्य खदानों में नियोजन नहीं किया गया जिसके कारण यह स्थिति निर्मित हुई है। गौरतलब है कि बंद खदानों का मेन पावर जिन खदानों में शिफ्ट किया गया वह पहले से ही घाटे में है और सरप्लस मेन पावर बता रही है। अब इन खदानो में और अधिक कर्मचारियों के आ जाने के कारण स्वभाविक रूप से घाटा अधिक हो गया है।

प्रबंधन खदानों में ठेका पद्धति से कार्य करा रहा
जेसीसी की बैठक में हमने इस विषय को प्रबंधन के समक्ष
उठाया था और कहा है कि पेंच की समस्त खदानों के मेनपावर की समीक्षा कर वहां मेन पावर की आवश्यकता के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी जाए। प्रबंधन खदानों में ठेका पद्धति से कार्य करा रहा है जबकि स्थाई कर्मचारी मौजूद है उनसे काम लिया जाना चाहिए। पेंच
की खदानों में मेन पावर सरप्लस जैसी स्थिति नहीं है और हम श्रम
शक्ति का उचित नियोजन करने के लिए प्रबंधन के साथ पूरा सहयोग
करने के लिए तैयार है।
कुंवर सिंह, महामंत्री बीएसएस
प्रबंधन ठेका के माध्यम से खदानो में काम कराना चाहता है इसलिए स्थाई कर्मचारियों की जगह ठेका कर्मियों को लगाया जा रहा है बाद में सरप्लस बताकर वालंटियर रिटायरमेंट अथवा अन्य स्कीम के माध्यम से कामगारो को हटाना प्रबंधन की नीति है। सरप्लस मेन पावर होने के बाद भी आउट सोर्सिंग करना खदानों के राष्ट्रीयकरण की मूल अवधारणा को नुकसान पहुंचाना है जिसका हम विरोध करते है।
रवि वर्मा, महामंत्री इंटक

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