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इस स्थान पर पहुंचने के बाद राष्ट्रपति बोले मैं धन्य हो गया, जानें खूबी

locationछिंदवाड़ाPublished: Sep 23, 2017 04:58:51 pm

Submitted by:

Rajendra Sharma

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी दीक्षा भूमि पहुंचे

President Ram Nath Kovind in nagpur

President Ram Nath Kovind arrives in Diksha bhumi

छिंदवाड़ा/नागपुर. नागपुर की दीक्षा भूमि की पुण्य स्थली पर पहुंचाना सभी के लिए सौभाग्य की बात होती है। शुक्रवार को नागपुर पहुंचे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी दीक्षा भूमि पहुंचे। उन्होंने कहा कि मुझे बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर द्वारा पवित्र की गई दीक्षा भूमि की पुण्य स्थली को नमन करने का सौभाग्य मिला।
उल्लेखनीय है कि इंटरनेशनल ड्रैगन पैलेस टेम्पल परिसर में विपस्सना ध्यान केंद्र के उद्घाटन के अवसर पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के साथ महाराष्ट्र के राज्यपाल विद्यासागर राव, केंद्र सरकार में सडक़ परिवहन एवं राजमार्ग, जहाजरानी, जल संसाधन, नदी विकास तथा गंगा संरक्षण मंत्री नितिन गडकरी , महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फणनवीस, महाराष्ट्र सरकार के ऊर्जा मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले, सामाजिक न्याय मंत्री राजकुमार बडोलेए विपस्सना ध्यान केंद्र की अध्यक्षा सुलेखा कुम्भारे आदि मौजूद थे।।
इस दौरान राष्ट्रपति ने अपने उद्बोधन में कहा कि आध्यात्म की पावन धरती महाराष्ट्र में आने का अवसर मिलना अपने आप में बड़े सौभाग्य की बात है। महाराष्ट्र से जुड़ी अनेकों विशेषताएं और उपलब्धियां गिनाई जा सकती हैंय लेकिन यह राज्य आस्था और ध्यान के लिए सबसे अधिक जाना जाता है। आज नागपुर में मुझे बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर द्वारा पवित्र की गई दीक्षा भूमि की पुण्य स्थली को नमन करने का सौभाग्य मिला। और यहां मैं विपस्सना ध्यान केंद्र का उद्घाटन कर रहा हूं। मेरी इस यात्रा के पीछे भगवान बुद्ध का आशीर्वाद है, जिनकी शिक्षा ढाई हजार सालों से हमारे देश को प्रेरणा देती रही है। सम्राट अशोक से लेकर महाराष्ट्र के बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर तक भगवान बुद्ध से ही प्रेरित हुए थे। हमारा भारतीय संविधान भी मूलत: बौद्ध दर्शन के आदर्शो पर आधारित है जिसमें मानव-मानव के बीच समानताए भ्रातृत्व और सामाजिक न्याय का सामंजस्य दिखता है। साथ ही, हमारे संविधान के निर्माता बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर ने संविधान-सभा में अपने अंतिम भाषण में बताया था कि हमारे लोकतन्त्र की जड़ें कितनी गहरी और पुरानी हैं। इस संदर्भ में उन्होने भगवान बुद्ध की परंपरा का उदाहरण दिया था। उन्होने कहा था कि भारत में संसदीय प्रणाली की जानकारी मौजूद थी। यह प्रणाली बौद्ध भिक्षु संघों द्वारा व्यवहार में लायी जाती थी। भिक्षु संघों ने इनका प्रयोग उस समय की राजनीतिक सभाओं से सीखा था। बौद्ध संघों में प्रस्ताव, संकल्प, कोरम, सचेतक, मतगणना, निंदा प्रस्ताव आदि के नियम थे। हमारे आधुनिक संविधान की रचना करके बाबा साहब ने इसी प्राचीन लोकतान्त्रिक परंपरा की फिर से प्रतिष्ठा की।
बौद्ध दर्शन के मूल में एक क्रांतिकारी चेतना है जिसने पूरी मानवता को अभिभूत कर दिया है। यह भारत से निकलकर श्रीलंकाए चीनए जापानए और इस तरह एशिया से होते हुए पूरी दुनिया में अपनी जड़ें जमा चुका है।
बौद्ध दर्शन में समाज को सुधारने का जो आदर्श है वह बाद की सदियों में अनेक समाज सुधार आंदोलनों को दिशा दिखाता रहा है। ऐसे कई आंदोलन महाराष्ट्र में ही हुए हैं। महाराष्ट्र में हुए समाज सुधार के आंदोलनों ने 19वीं और 20वीं सदी के दौरान भारत के अन्य क्षेत्रों के लिए उदाहरण प्रस्तुत किया। भारत में प्राचीन काल से ही अपनाई गई विपस्सना जैसी ध्यान की पद्धतियां केवल हमारे देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में काफी लोकप्रिय होती जा रही हैं।
भगवान बुद्ध द्वारा प्रदिपादित ध्यान पद्धति ही विपस्सना है। विपस्सना का सीधा सा अर्थ है ठीक से देखना। अपनी सांस परए अपने विचारों परए अपने शरीर के हर हिस्से पर और अपनी भीतरी प्रवृत्तियों पर इतनी सजग निगाह रखना कि कुछ भी अनदेखा न रहे। ऐसा करने से हम अपने असली स्वरुप से जुड़ते हैं।
इस केंद्र को अपने सभी उद्देश्यों में सफलता मिले यह मेरी शुभकामना है। मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि विपस्सना के संदेश को और भगवान बुद्ध की शिक्षा को आप सब दुनिया के कोने.कोने तक फैलाएँ। मैं मानता हूँ कि असुरक्षा और उथल.पुथल से भरे आज के माहौल में शांतिदूत गौतम बुद्ध का अहिंसा, प्रेम और करुणा का सन्देश बहुत अधिक प्रासंगिक है। इंसानियत को जोडऩे वाली अपनी कोशिश को आप सब पूरी ताकत के साथ आगे बढ़ाते रहेंगेए यह मेरा विश्वास है।
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