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विडम्बना: बैलों की जगह खेतों में जुत रहे आदिवासी

locationछिंदवाड़ाPublished: Jul 16, 2019 12:36:02 am

Submitted by:

prabha shankar

नहीं मिल पाता शासकीय योजनाओं का लाभ

Benefits of Government Schemes Not Found

Benefits of Government Schemes Not Found

विपिन श्रीवास्तव
छिंदवाड़ा/ परासिया. पगारा के समीप आदिवासी बहुल क्षेत्र पलायन के लिए जाना जाता है। रोजगार की तलाश में इस क्षेत्र के गांव के गांव खाली हो जाते हैं। यहां रोजगार का एकमात्र साधन खेती है। हालांकि पथरीली जमीन और कम रकबा होने के कारण एक किसान को इतना भी नहीं मिल पाता कि वह अपने परिवार का पालन कर सकें। यहां वर्तमान में खेतों की जुताई के लिए बैल की बजाय परिवार के ही सदस्य हल खींचने का काम कर रहे हैं। यह विडम्बना ही है कि कई शासकीय योजनाएं होने के बाद भी इन आदिवासियों को अब तक किसी तरह की सहूलियत नहीं मिल सकी है।

डोमाखेड़ा निवासी राजकुमारी कहती है कि पिछले वर्ष परिवार में शादी थी। पैसों की जरूरत पड़ी तो बैल बेच दिया। अब बैल की जगह परिवार के सदस्य ही बारी-बारी हल खींचते हैं।

वहीं सुखिया बाई की व्यथा अलग हैं। उनके अनुसार इस क्षेत्र में खेती का रकबा बहुत कम है। कम रकबे में बैल और खेती के अन्य संसाधन जुटाना काफी महंगा पड़ता है।

बागबरदिया गांव के किशनू ने बताया कि जैसे-तैसे उन्होंने खेत को जोत और बो तो दिया, लेकिन निंदाई डौरा के लिए बैल नहीं है इसलिए परिवार के लोग बैल की जगह काम करते हैं।

हाथ लगती है निराशा
इस इलाके में कई वर्षों से काम करने वाले शोएब सिद्दकी ने बताया कि करीब एक दर्जन ग्रामों में यही स्थिति है। आदिवासी बहुल क्षेत्र होने के बाद भी किसानों को कृषि विभाग की योजनाओं का लाभ नहीं मिलता। निदाई के लिए उपकरण नहीं हैं और बीज-खाद के लिए यहां से कई किमी दूर सोसायटी का चक्कर लगाकर खाली हाथ लौटना पड़ता है। शासकीय योजनाओं के लाभ के लिए इतनी ज्यादा खानापूर्ति है कि ये आदिवासी इसेे समझ ही नहीं पाते।

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