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सफल होने के लिए सहनशील बनने की जरूरत

locationचेन्नईPublished: Nov 17, 2018 06:07:19 pm

Submitted by:

Santosh Tiwari

सही मायने में शांति उसी को मिलती है जिसमें सहन करने की शक्ति होती है : गौतममुनि

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सफल होने के लिए सहनशील बनने की जरूरत

चेन्नई. साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने शुक्रवार को कहा जीवन में सुख दुख का आना जाना लगा ही रहता है। लेकिन उसे समता से सहन करने की जरूरत है। संसार में रहने वाले प्रत्येक जीव सुखी जीवन की इच्छा रखते है। सभी चाहते हैं उनका जीवन शांतिमय बना रहे, कोई परेशानी ना हो, लेकिन सही मायने में शांति उसी को मिलती है जिसमें सहन करने की शक्ति होती है। सहनशील व्यक्ति कभी भी परेशान नही होता है, बल्कि परेशानियां आने पर उसका आसानी से रास्ता निकाल लेता है।

सागरमुनि ने कहा परमात्मा दयावान होते है और इसी लिए लोग उनको याद करते हैं। उनके उपकारों को याद करते हुए जीवन में बदलाव लाने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस मनुष्य के पास आचरण और संयम की ताकत होती है वह सबसे बलवान होता है। जब तक आत्मा है तब तक जीवन है आत्मा निकलने के बाद जीवन नही बच सकता।
इसलिए अपने आचरण से आत्मा की निर्जरा कर लेनी चाहिए। इस मौके पर संघ अध्यक्ष आनंदमल छल्लाणी व अन्य पदाधिकारियों ने परम विदुषी श्राविका मदनबाई खाबिया का अभिनंदन किया। कोषाध्यक्ष गौतम दुगड़ ने बताया कि विनयमुनि और गौतममुनि के सानिध्य में शनिवार को ईएनटी हेल्थ चेक-अप और रविवार को स्वास्थ्य जांच शिविर लगाया जाएगा।
इसके साथ ही रविवार को कर्नाटक गज केसरी गणेशीलाल की १३७वीं एवं जैन दिवाकर चौथमल की १४२वीं जन्म जयंती और वचन सिद्धयोगी तपस्वी वक्तावरमल की ९०वीं पुण्य तिथि मनाई जाएगी।


अशुभ योगों की कमजोरी निकालना आवश्यक

चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा मन, वचन, काया इन तीन योगों मेें काय मिलना सुलभ है। अल्प पुण्य वालों को काय योग मिलता है पर न तो वे सुन सकते हैं और न ही देख सकते हैं एवं न ही सुगंध का स्वाद ले सकते हैं। वे जीव हैं पृथ्वी, पानी व वनस्पति आदि। चींटी, मच्छर आदि में वचन योग होता है पर मन नहीं। मानव का मन मिला है अन्य जीवों की अपेक्षा सुविधा, सात, इंद्रिय क्षमता श्रेष्ठ रूप से मिली है। यदि इन्सान मन को विशिष्ट रूप से साथ ले ले तो चरम अवस्था की अनुभूति कर सकता है। दुनिया में योग-भोगी दोनों प्रकार के लोग हैं। योगी संसार को सपना मानते हैं, धन वैभव से अनासक्त रहते हैं। भोगी संसार को अपना मानता है और परिवार, धन, वैभव में आसक्त रहता है। अपना मानने में ममत्व पैदा होता है और सपना मानने में समत्व। जैसे शरीर की कमजोरी दूर करना जरूरी है वैसे ही अशुभ योगों की कमजोरी को निकालना भी अत्यावश्यक है। साध्वी ने कहा जिसके पास धन है वह धनी, विद्या है वह विद्वान और जमीन है वह जमींदार कहलाता है। आपके पास योग है फिर भी योगी नहीं बन पा रहे हैं अत: योगों पर नियंत्रण कीजिए। मानव के पास पैसा, पुत्र व परिवार नहीं होता है तो वह स्वयं को दुखी मानता है जबकि परमात्मा ने कहा है कि यह दुख तो सामान्य है। संसारी जीव दुखी हैं। सुख चाहिए तो सांसारिक वस्तुओं का त्याग करें। संसार तो दुखों का दरिया है।

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